लेखक ने लता की गायकी की किन विशेषताओं को उजागर किया है? आपको लता की गायकी में कौन-सी विशेषताएँ नजर आती हैं? उदाहरण सहित बताइए।
लेखक ने लता की गायकी की निम्नलिखित विशेषताओं को उजागर किया है-
1. निर्मलता-लता की गायकी की एक प्रमुख विशेषता है-उसके स्वरों की निर्मलता। लता का जीवन की ओर देखने का जो दृष्टिकोण है, वही उसके गाने की निर्मलता में झलकता है।
2. स्वरों की कोमलता और मुग्धता-लता की गायकी के स्वरों में कोमलता और मुग्धता है। इसके विपरीत नूरजहाँ के गायन में एक मादक उत्तान दिखाई पड़ता था।
3. नादमय उच्चार-यह लता के गायन की एक अन्य प्रमुख विशेषता है। उसके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अंतर स्वरों की आस द्वारा बड़ी सुंदर रीति से भरा रहता है और ऐसा प्रतीत होता कि वे दोनों शब्द विलीन होते-होते एक दूसरे में मिल जाते हैं।
4. श्रृंगार की अभिव्यक्ति–लेखक के मत में लता ने करुण रस के साथ तो अधिक न्याय नहीं किया, पर मुग्ध श्रृंगार की अभिव्यक्ति करने वाले गाने उत्कटता से गाए हैं।
हमें भी लता की गायकी में उपर्युक्त सभी विशेषताएँ नजर आती हैं। लता की गायकी में वह जादू है जो सभी को मंत्रमुग्ध कर देता है। लता के गायन की मिठास लोगों को मस्त कर देती है।
सामान्यत: ऐसा माना जाता है कि लता के गाने में करुण रस विशेष प्रभावशाली रीति से व्यक्त होता है, पर लेखक को यह बात जँचती नहीं। लेखक का मानना है कि लता ने करुण रस के साथ उतना न्याय नहीं किया है जितना मुग्ध शृंगार के साथ किया है। श्रृंगारपरक गाने वे बहुत उत्कटता से गाती हैं।
हम लेखक के इस कथन से केवल आशिक रूप से ही सहमत हैं। लता ने श्रृंगारपरक गाने उत्कटता के साथ अवश्य गाए हैं, पर करुण रस के साथ भी न्याय किया है। हाँ, उनकी संख्या अवश्य कम हो सकती है। उदाहरण के रूप में हम लता के द्वारा चीनी आक्रमण की पृष्ठभूमि में गाया गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी’ को ले सकते हैं। इस गीत में उन्होंने इतनी करुणा उँडेली कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की आँखें भी सजल हो उठी थीं। लता ने सभी प्रकार के गाने पूरी तन्मयता के साथ गाए हैं।
लेखक ने पाठ में गानपन का उल्लेख किया है। पाठ के संदर्भ में स्पष्ट करते हुए बताएँ कि आपके विचार में इसे प्राप्त करने के लिए किस प्रकार के अभ्यास की आवश्यकता है?
लेखक ने पाठ में गानपन का उल्लेख किया है। ‘गानपन’ वह मिठास होती है जो श्रोता को मस्त कर देती है। इसका वह अनुभव कर सकता है। जिस प्रकार मनुष्यता होने पर ही मनुष्य होता है, उसी प्रकार ‘गानपन’ के होने पर ही संगीत होता है। लता के हर गाने में शत-प्रतिशत ‘गानपन’ मौजूद रहता है। लता की लोकप्रियता का मर्म भी यही ‘गानपन’ है।
हमारे विचार में इस ‘गानपन’ की विशेषता को प्राप्त करने के लिए नादमय उच्चार करके गाने के अभ्यास की आवश्यकता है। इसमें दो शब्दों का अंतर एक दूसरे में विलीन हो जाता है। गाने को मिठास और स्वाभाविकता के साथ गाया जाना भी आवश्यक है। बहुत ऊँची पट्टी में नहीं गाना चाहिए।