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यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है, लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों?


यशोधर बाबू के व्यक्तित्व का विकास किशनदा जैसे व्यक्ति के पूर्ण प्रभाव में हुआ है। यशोधर बाबू के चलने बोलने सोचने आदि सब कुछ पर किशनदा का कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य है। किशनदा बहुत हद तक सामाजिक जीवन से जुड़े व्यक्ति थे। उनके क्वार्टर में कई लोग रहा करते थे। उन सबके प्रति किशनदा का स्नेह और प्रेम था। यशोधर बाबू को भी उनका स्नेह और प्रेम प्राप्त हुआ था। उन्होंने ही यशोधर जी को नौकरी दिलवायी थी। उनके सोचने समझने की विशेषता विकसित की थी। किशनदा जीवनभर अपने सिद्धान्तो पर अडिग रहे। उन्होंने शादी नहीं की थी इसलिए वे अपने अधिकांश सिद्धान्तों का पालन कर सके। यशोधर बाबू के साथ ऐसा नहीं था। उनके चार संतानें थीं। तीन बेटे एक बेटी और उनकी माँ के सोचने का ढंग नये जमाने के हिसाब से था जबकि यशोधर पंत जी अपने संयुक्त परिवार के दिनो एवं पुराने समय की यादों से घिरे रहना पसंद करते थे। उन्होंने सरकारी क्वार्टर भी इसी कारण नहीं छोड़ा है। वह शादी में मिली घड़ी का इस्तेमाल पच्चीस साल बीत जाने के बाद भी करते हैं,

इस सबके ठीक विपरीत उनकी पत्नी के व्यक्तित्व का विकास किसी व्यक्ति विशेष’ के प्रभाव से नहीं हुआ है। जिस संयुक्त परिवार को यशोधर बाबू बहुत याद करते उसी संयुक्त परिवार के दु:खद अनुभव उनकी पत्नी को अभी तक याद हैं। लेखक स्वयं कहता है कि मातृ सुलभ प्रेम के कारण वह अपनी संतानो का पक्ष लेती है। इस तरह वह नये जमाने के साथ ढल सकने में सफल होती है। वह बेटी के कहने के हिसाब से कपड़े पहनती है। अपने बेटों के किसी मामले में दखल नहीं देती हैं। जबकि यशोधर बाबू के सोचने का ढंग अपना होता है। उनकी सोच पुरानी पीढ़ी की सोच के हिसाब से होती है। इसी कारण वे समय के हिसाब से ढल पाने में असफल होते हैं।

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यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार पर उसके लिए तर्क दीजिए

(क) यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति के पात्र नहीं हैं।

(ख) यशोधर बाबू में एक तरह का द्वन्द्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खीचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है।

(ग) यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व हैं और नयी पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना उचित नहीं है।


यशोधर बाबू एक असंतुष्ट एवं अंतर्द्वन्द्व से ग्रस्त व्यक्ति हैं। उनमें एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है।

कहानी पड़ने के बाद यशोधर बाबू के बारे में उपरोक्त बात ही प्रमाणित होती है। सोच और अनुभव के आधार पर मैं इसी बात का समर्थन करता हूँ। यशोधर बाबू एक व्यापक सामाजिक सोच के व्यक्ति हैं। उनके भीतर पुरानी पीढ़ी की कुछ सामान्य विशेषता शामिल है। वह अपने सिद्धांतों और मूल्यों के साथ अपना जीवन बिताने का प्रयास करते हैं। उनकी संतान और आस-पास के लोग नये जमाने के साथ चलने वाले लोग हैं। यशोधर बाबू खुद अपने आप को दुनियादारी में पिछड़ा मानते हैं। इस तरह वह नयेपन को स्वीकार करते हैं। उन्हें अपने बेटो का आगे बढ़ना भीतर ही भीतर अच्छा लगता है। वह अपने प्रेरणा स्रोत किशनदा की मौत के कारण को कही न कहीं महसूस करते हैं। अपनी सोच और आदर्शो के प्रति उन्हें खुद संशय है। वह अक्सर नकली हँसी का सहारा लेकर अपनी बाते बताते हैं।

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पाठ में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य की कितनी अर्थ छवियाँ आप खोज सकते/सकती हैं?


किशनदा पुरानी पीढ़ी के प्रतिनिधि पात्र हैं। उनका जीवन उस पीढी से संबंधित मूल्यों एवं सिद्धांतों का प्रतीक है। किशनदा भी बदलते समय के साथ बदल नहीं पाये थे। उन्होंने शहर में अपना मकान नहीं बनवाया था। कुछ दिन दिल्ली में रहने के बाद वे अपने गाँव रहने चले गये थे। गाँव में कुछ दिनों के बाद ही वह मर गये। मरने से पहले उन्हें किसी तरह की बीमारी नही हुई थी। यशोधर के पूछने पर यह जवाब मिला कि “जो हुआ होगा” उसी से मर गये। इस वाक्य की अनेक छवियाँ बनती हैं, जो इस प्रकार हो सकती हैं:

1. पहला अर्थ तो खुद कहानीकार ने स्पष्ट किया है कि “पता नहीं, क्या हुआ।”

2. दूसरा अर्थ किशनदा की हताशा को अभिव्यक्त करता है। जीवन के अंतिम चरण में अपने पास किसी को न पाकर किशनदा मानसिक रूप से टूट गये होंगे। उनके मन में जीने के प्रति इच्छा खत्म हो गयी होगी। इस तरह धीरे-धीरे वह मृत्यु के करीब पहुँच गये होंगे।

3. ‘जो हुआ होगा’ वाक्य से किशनदा के प्रति लोगों की मानसिकता भी उभरती है। उनके जैसे व्यक्तित्व का उनके समाज में कोई महत्त्व नहीं था। उनका मर जाना भी कोई बहुत बड़ी घटना के रूप में नहीं लिया गया। यह जानने की कोशिश नहीं हुयी कि बिना बीमारी के किशनदा क्यों मर गये।

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यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा वेंने में किसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा और कैसे?


(नोट: इस प्रश्न का उत्तर छात्र कई तरह से दे सकता है। उसके जीवन में किसी भी व्यक्ति का प्रभाव हो सकता है। यहाँ विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से इसे स्पष्ट किया जा रहा है। हम किसी भी एक उदाहरण को अपना उत्तर मान सकते हैं।)

1. मेरे जीवन पर मेरी माँ का बहुत प्रभाव है। इस बात कौ मैं बहुत अच्छी तरह अनुभव करता हूँ। वैसे तो मेरी माँ गृहिणी है, लेकिन उनके सोचने-समझने का दायरा बहुत व्यापक है। वह पढ़ी-लिखी भी है। इसलिए उनको मेरी समस्यायें बहुत अच्छी तरह समझ में आती हैं। मैं उनकी तरह सोचने का प्रयास करता हूँ। वह सही गलत का फैसला बहुत अच्छी तरह कर लेती हैं। इसी के साथ वह नयी सोच एवं चीजों के प्रति रुचि से सुनती हैं। उनकी इच्छाशक्ति बहुत दृढ़ है। उनमे सहनशक्ति बहुत प्रबल है। मैं अपनी माँ के इन सारे गुणों को अपने व्यक्तित्व को शामिल होते देखना चाहता हूँ।

2. मैं अपने व्यक्तित्व के विकास मे अपने पिता का प्रभाव सबसे अधिक पाता हूँ। मेरे पिता मेरे सबसे बड़े आदर्श हैं। वह मुझे दुनिया में सबसे अच्छे लगते हैं। पिता होने के बाद भी वह मेरी बातों को अच्छी तरह समझते हैं। मेरी बातों को ध्यान से सुनकर उसको समझते हैं। उनको पढ़ने का बहुत शौक है। मुझे पढ़ने की आदत उन्हीं से मिली है। उन्होंने एक अच्छी लाइब्रेरी बना रखी है। उन्होंने मुझे हमेशा अच्छी पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया है। दूसरों की इच्छा का ध्यान रखना मेरे पिता की दूसरी सबसे बड़ी विशेषता है। इस विशेषता को मैंने भी अपनाने का प्रयास किया है। में तो उन्हें इतना पसंद करता हूँ कि मैं उन्हीं की तरह चलने बैठने का प्रयास भी करता हूँ।

(छात्र इसी प्रकार अन्य लोगों के प्रभाव के बारे में लिख सकते हैं।)

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‘समहाउ इंप्रापर’ वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रारंभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं। इस वाक्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या संबंध बनता है?


यशोधर बाबू का व्यक्तित्व नये जमाने के साथ तालमेल न बिठा पाने वाला है। वह अधिकांश नये बदलावों से असंतुष्ट होते हैं। वह हर चीज का मूल्यांकन अपनी सोच के आधार पर करते हैं।

कहानी का कथ्य भी समाज के उस व्यक्तित्व को उभारता है, जो पुराने मूल्यों एवं आदर्शो से जुड़ा हुआ है। कहानीकार ने यशोधर बाबू के बेटे बेटी और उनकी पत्नी के माध्यम से नये जमाने की सोच को दर्शाया भी है। ऑफिस के सहयोगियों के माध्यम से नयी सोच का पता चलता है। इन सारी स्थितियों में यशोधर बाबू जिन घटनाओं या बातों से तालमेल नहीं बिठा पाते हैं या जिन बातों को सहज ढंग से स्वीकार नहीं कर पाते हैं, उन्हें वे ‘समहाउ इंप्रापर’ कहकर अभिव्यक्त करते हैं। इस तरह की इतनी अधिक स्थितियाँ उनके सामने आती हैं कि यह वाक्यांश उनका जुमला बन जाता है। यह वाक्यांश उनके असंतुलन एवं असहज व्यक्तित्व को अर्थ प्रदान करता है।

कहानी के अंत में यशोधर जी के व्यक्तित्व की सारी विशेषता उभरती है। नये जमाने और पुरानी पीढ़ी के बीच का अंतर स्पष्ट होता है। इस तरह इस वाक्याश से हमे यह भी पता चलता है कि नये जमाने के हिसाब से यशोधर जी स्वयं ‘समहाउ इंप्रापर’ हो गय हैं। कहानी का मूल कथ्य भी नयी पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के बीच के इसी अंतर को स्पष्ट करता है।

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