यह सत्य है कि मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है पर जब वह बोलने लगी तो उसमें अनेक परिवर्तन हुए। ये परिवर्तन अभिनेता. दर्शक और तकनीकी दृष्टि से हुए जो निम्न प्रकार से हैं-
(1) अभिनेता-पहले मूक फिल्मों में पहलवान शरीर वाले करतब दिखाने वाले और उछल कूद करने वाले अभिनेताओं को प्रमुखता दी जाती थी लेकिन जब फिल्म बोलने लगी तो संवाद बोलना प्रमुख हो गया। एसे में पढ़े-लिखे अभिनेताओं को प्रमुखता दी गई क्योंकि संवाद शुद्ध व सही रूप में बोले जाने जरूरी थे। समयानुसार कई बार संवादों में परिवर्तन भी करना पड़ता था।
(2) दर्शक-बोलने वाली फिल्मों ने दर्शकों की रुचि में अपार परिवर्तन ला दिया। उन्हें फिल्मे सच के धरातल पर दिखाई देने लगी। अब फिल्मों में सार्वजनिक झलक दिखाई देने लगी।
(3) तकनीकी दृष्टि-तकनीकी स्वरूप में भी अब काफी परिवर्तन आ गया। पहला परिवर्तन ध्वनि के कारण हुआ और दूसरा महत्त्वपूर्ण परिवर्तन कृत्रिम प्रकाश देने से आया। भाषा में भी बदलाव आ गया। अब परिष्कृत भाषा का प्रयोग होने लगा। वाद्य यंत्रों का भी प्रयोग बढ़ गया क्योंकि अब गीत गाए जाने लगे थे।
जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर लिखा था-’वे सभी सजीव हैं. सांस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए; उनको बोलते; बातें करते देखो।’
‘अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए’ यह पंक्ति दर्शाती है कि फिल्म में अठहत्तर चेहरे थे अर्थात् फिल्म में अठहत्तर लोग काम कर रहे थे।