साँप अपने सीमित दायरे में केवल रेंगते हुए ही संतुष्ट था। आकाश की ऊँचाइयाँ व बाहर की स्वच्छंदता से उसे कुछ लेना-देना न था। वह उड़ने की इच्छा को मूर्खतापूर्ण मानता है और सोचता है कि उड़ने और रेंगने के बीच कौन-सा बड़ा अंतर है। सबके भाग्य में तो एक न एक दिन मरना लिखा है और मरकर सभी को मिट्टी मे ही मिल जाना है।
जब वह बाज के घायल होने पर भी उसकी उड़ने की असीम चाह देखता है तो उसके मन में भी इच्छा जागृत होती है कि वह भी देखे कि आकाश में ऐसा क्या है, जिसके वियोग में बाज इतना व्याकुल होकर छटपटा रहा है। तब उसने भी उड़ने की कोशिश की।
इस कहानी में दो नायक हैं साँप और बाज। इन दोनों नायकों का लेखक ने कुशलता से चुनाव किया है। आकाश असीम है और बाज उस असीम का प्रतीक है जो स्वतंत्र भाव से आकाश की ऊँचाइयों को पा जाना चाहता है। दूसरी और साँप है जो अपनी ही बनाई सीमाओं में बंद है, उसने स्वयं ही अपने लिए परतंत्रता का दायरा कायम किया है। साथ ही लेखक ने यह भी दर्शाया है कि बाज वीर है घायल होने पर भी लंबी उड़ान की चाह रखता है जबकि साँप कायर है जो गुफा से बाहर निकलना ही नहीं चाहता।
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि लेखक ने इन दोनों नायकों के माध्यम से स्वतंत्रता-परतंत्रता एवं वीरता-कायरता के भावों को प्रकट करना चाहा है।
यही कहानी बंदर और मगरमच्छ के द्वारा भी प्रस्तुत की जा सकती है क्योंकि बंदर स्वतंत्र व निरंतर विचरण करने वाला प्राणी है। उसके लिए कोई सीमा रेखा नहीं जबकि मगरमच्छ अपने सीमित दायरे में कभी धरती व कभी पानी में जीवन व्यतीत करता है, आलसी व धीमी गति से चलने वाला प्राणी है।