Press "Enter" to skip to content

ब्रह्मचारिणी माँ – दुर्गा का दूसरा स्वरूप

Rina Gujarati 0

ब्रह्मचारिणी माँ की नवरात्र पर्व के दूसरे दिन पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है। यह जानकारी भविष्य पुराण से ली गई हे।

ब्रह्मचारिणी माँ

श्लोक

दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु ।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥

शक्ति

इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं। जिससे उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें।

फल

माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।

माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।

इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।

नवरात्रि 

नवरात्रि एक सतत उत्सव है। उसी तरह हर दिन जिन देवी की पूजा-अर्चना का महात्मय है, वे भी देवी दुर्गा का स्वरूप ही है। वास्तव मे वर्षाऋतु के अंत मे और दीपावली पर्व से पहले शक्ति की उपासना कर हम देवी का प्रसाद पाते है। साथ ही उत्सव भी मानते है। जहां नवरात्रि मे रामलीला होती है वहाँ भी आशय तो देवकृपा पाना और उत्सव मानना ही होता है। 

शायद इसी लिए हमे उत्सवप्रिय प्रजा कहा जाता है। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *