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D-Day विश्व युद्ध का कयामत का दिन 6 जून 1944

Rina Gujarati 0
D-Day

D-Day विश्व युद्ध का कयामत का दिन 6 जून 1944
दूसरा महायुद्ध दुनियाभर मे फैला था। विश्व के कई देश इसकी वजह से तबाह-बरबाद हो गए। युद्ध कितने बड़े पैमाने पर लड़ा गया था, या कितने संसाधन उस युद्ध मे प्रयोग मे लाए गए थे उसकी एक झलक समजने के लिए D-Day यानि 6 जून 1944 की लड़ाई की बाते जाननी जरूरी है। कहते है ‘युद्धस्य कथा रम्य’ मतलब युद्ध की कहानी बड़ी रोचक होती है। आजकल दुनिया फिल्मों या ऑनलाइन खेल या फिर सीरियलों मे भी मारधाड़ की दीवानी है। D-Day की कहानी मे मारधाड़, सस्पेंस, थ्रिलर, सबकुछ था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मित्र देशों के आक्रमण के 6 जून 1944 मंगलवार को लैंडिंग ऑपरेशन नोर्मर्डी ऑपरेशन से जाना जाता है। ऑपरेशन नेप्च्यून नाम और अक्सर डी-डे के रूप में संदर्भित, यह इतिहास का सबसे बड़ा समुद्री आक्रमण था। इस ऑपरेशन ने नाजी नियंत्रण से जर्मन-कब्जे वाले फ्रांस (और बाद में पश्चिमी यूरोप) की मुक्ति शुरू की, और पश्चिमी मोर्चे पर मित्र देशों की जीत की नींव रखी।

इस ऑपरेशन का स्केल इतना बड़ा था की उससे पहले कोई सोच भी नहीं सकता था की इतने बड़े स्केल पर लड़ाई की ना सिर्फ कल्पना की जा सकती है पर वास्तविक धरातल पर उसका आयोजन करके उसके मुताबिक युद्ध हो सकता है। मूल रूपसे समुद्री आक्रमण था पर उसे सहायता के लिए और आक्रमण की सफलता के लिए हवाई सेना भी उपयोग मे लाई गई थी। 1943 से इसकी प्लानिंग शुरू की गई थी। जर्मन सेना और हिटलर को धोखा देने के लिए ‘ऑपरेशन बोडीगार्ड’ नामसे एक दूसरा ऑपरेशन भी साथसाथ चलाया जा रहा था जिससे आक्रमण की जगह और समय के बारे मे दुश्मन को अंधेरे मे रखा जाए।

6 जून का आक्रमण या लेंडिंग के लिए चयन किया गया था वह वेधर के हिस्साब से बड़ा मुश्किल दिन था। समुद्री हवाए ज्यादा तेज थी और किसी भी सफल लश्करी ऑपरेशन के लिए जरूरी सारी वातावरणीय अनुकूलताओ का अभाव था। पर चुकी चंद्र की हाजरी, टाइड की जरूरत, दिन का समय ये सारी ऑपरेशन के लिए अनिवार्यता थी और उस हिसाब से 15 दिन ऑपरेशन मुलतवी किया जाना संभव नहीं था तो विपरीत परिस्थितियो मे भी लेंडिंग किया गया था।

पहेले से ही अगली रात मे भारी हवाई बोम्बार्डमेंटके साथ साथ करीब 24000 मित्रसेना के सैनिक हवाई रास्ते से मध्यरात्रि के कुछ समय बाद तुरंत ही उतार दिए गए थे। लेंडिंग का तट 80 किमी निर्धारित किया गया था। हवाई सैनिक भारी सावचेती के बावजूद नियत स्थल से ज्यादा बीखरगए थे। दुश्मन सेना ने कई जगह सुरंगे बिछा रखी थी। इन सब स्थितियो मे भारी जान हानी ऑपरेशन शुरू होने से पहले ही उठानी पड़ी थी। मुख्य बेड़ा सुबह के 6:30 बजे उतारा गया। तूफानी हवाओ के बहाव ने कई जहाजो के रास्ते बदल दिए थे। नियत किए अनुसार पाँच मुख्य विभागो मे धावा बोलना था और पाँच महत्व के स्थानो का कबजा करना था। किनारो पे खाइया बनी हुए थी जिसमे सुरंगे भी बिछी हुए थी। सब मिला के सिर्फ दो ही टार्गेट कब्जा किया जा सका। तीसरा स्थान पाने मे 21 जुलाई तक का समय लग गया। और बाकी दो जगह उसके बाद भी जर्मन कब्जे मे रहे। जो बाद मे जीते गए।

कुल मिलाकर योजना अनुसार पहेले दिन मित्रदेशों का कोई फायदा नहीं हुआ। प्रथम दिवस मे एक भी नियत टार्गेट कब्जे मे नहीं ले सका गया। पर इस लेंडिंग से महत्व के स्थान पर पैर टिकाने की जगह मिल गई। आगे उससे जर्मन कब्जेवाला फ्रांस का हिस्सा ही नहीं पूरे पश्चिमी यूरोप को मुक्त करने का रास्ता साफ होता गया। इसी ऑपरेशन की वजह से जर्मन सेनाओ की पीछेहट शुरू हुई और युद्ध मे निर्णायक हार की कगार पर हिटलर को जाना पड़ा। जर्मन सेना के 4000 से 9000 सैनिक मारे गए और मित्रदेशों के 10,000 सैनिक मरे। मित्रदेशों की तरफ से इस ऑपरेशन मे 1,56,000 सैनिक और 1,95,700 अन्य सहायक नाविको ने हिस्सा लिया था जब की जर्मन सेना के 50,000 से ज्यादा सैनिक उनका मुक़ाबला करने के लिए लड़े थे। 6,939 वेसल्स, 1,213 वोरशिप, 4,126 विभिन्न प्रकार के लैंडिंगक्राफ्ट्स, 736 सहायक नौकाए और 864 व्यापारिक जहाज इस ऑपरेशन मे प्रयोग मे लाए गए थे। मित्रदेशों की तरफ से कम सेकम 9 देशो के सैनिक युद्ध मे उतारे गए थे। सैनिको के अलावा फ्रांस के करीब 4000 नागरिकों की भी युद्ध मे मृत्यु हुई थी।

यह इतिहास का सबसे बड़ा समुद्री आक्रमण था। इतने बड़े पैमाने पर कभी समुद्री आक्रमण नहीं हुआ था। पहेले दिन आयोजन के मुताबिक प्रदेश कब्जे मे लेने मे सफलता ना मिलने के बावजूद इसी आक्रमण की वजह से जर्मनी की निर्णायक हार का रास्ता साफ हो गया था। क्रमश: फ्रांस का जर्मन कब्जेवाला प्रदेश और बाद मे पूरा पश्चिमी यूरोप का जर्मन कब्जा खतम करने मे इस ऑपरेशन ने निर्णायक भूमिका निभाई।

Rina Gujarati

I am working with zigya as a science teacher. Gujarati by birth and living in Delhi. I believe history as a everyday guiding source for all and learning from history helps avoiding mistakes in present.

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