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दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज बसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत बसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है?

परंपरागत रूप से बसंत का वर्णन करते हुए कवि प्राय: ऋतु परिवर्तन की शोभा का वर्णन करते हैं। रंग-बिरंगे फूलों, चारों ओर फैली हरियाली, नायिकाओं के झूले, परंपरागत रागों, राग-रंग आदि का कवि बखान करते हैं। वे नर-नारियों के हृदय में उत्पन्न होने वाले प्रेम और काम-भावों का वर्णन करते हैं, लेकिन इस कवित्त में देव कवि ने बसंत का बाल रूप में चित्रण किया है, जो कामदेव के बालक हैं। सारी प्रकृति उनके साथ वैसा ही व्यवहार करती दिखाई गई है, जैसा सामान्य जीवन में नवजात और छोटे बच्चों से व्यवहार किया जाता है। इससे कवि की कल्पना शीलता और सुकुमार भाव प्रवणता का परिचय मिलता है।
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‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’ -इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

काव्य-रूढ़ि है कि सुबह-सवेरे जब कलियाँ फूलों के रूप में खिलती हैं तो ‘चट्’ की ध्वनि करती हुई खिलती हैं। कवि ने इसी काव्य-रूढ़ि का प्रयोग करते हुए बालक रूपी बसंत को प्रात: जगाने के लिए गुलाब के फूलों की सहायता ली है। सुबह गुलाब के खिलते ही चहकने की ध्वनि उत्पन्न होती है। कवि ने इसी से भाव स्पष्ट किया है कि वह चुटकियाँ बजाकर बाल-बसंत को प्यार से जगाता है।
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निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य कीजिए-
पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।


देव ने श्रीकृष्ण की अपार रूप-सुंदरता का वर्णन करते हुए माना है कि उनके पाँच में पाजेब शोभा देती है जो उनके चलने पर मधुर ध्वनि उत्पन्न करती है। उनकी कमर में करघनी मधुर धुन पैदा करती है। उनके सांवले-सलोने शरीर पर पीले रंग के वस्त्र अति शोभा देते है। उनकी छाती पर फूलों की सुंदर माला शोभा देती हैं। ब्रिज भाषा में रचित पंक्तियों में तत्सम शब्दावली की अधिकता है। सवैया छंद और स्वरमैत्री लयात्मकता का आधार है। अभिधा शब्द शक्ति ने कथन को सरलता, सरसता और सहजता प्रदान की है। अनुप्रास अलंकार की स्वाभाविक शोभा प्रकट की गई है।
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पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।


(क) अनुप्रास-
(i) कटि किंकिनि के पुनि की मधुराई
(ii) सांवरे अंग लसै पट पीत।
(iii) हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
(iv) मंद हंसी मुखचंद जुलाई।
(v) जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर।

(ख) रूपक-
(i) मंद हंसी मुखचंद जुंहाई।
(ii) जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर।

 
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कवि ने ‘श्री ब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?

कवि ने श्री कृष्ण के लिए ‘श्री ब्रज दूलह’ का प्रयोग किया है। श्री कृष्ण ब्रह्म स्वरूप है और सृष्टि के कण-कण में समाए हुए हैं। सारी सृष्टि उन्हीं की लीला का परिणाम है। सभी सृष्टि उनकी प्रेम, करुणा और दया का परिणाम है। वे प्रत्येक प्राणी के जीवन के आधार हैं और सभी की आत्मा में उन्हीं का वास है। इसीलिए उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है।
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