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भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?


भाषा में झारखंडीपन से अभिप्राय भाषा के स्थानीय स्वरूप की रक्षा करना है। यह स्वरूप यहाँ की बोली में झलकता है। यह यहाँ की मौलिकता की पहचान है। यहाँ खड़ी बोली का प्रयोग तो बनावटीपन की झलक दे जाता है।

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दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?


’दिल के भोलेपन’ में सहजता का भाव है। ‘अक्खड़पन’ से तात्पर्य अपनी बात पर दृढ़ रहने का भाव है और ‘जुझारूपन’ में संघर्षशीलता की झलक मिलती है। ये तीनों विशेषताएँ आदिवासी समाज की विशिष्ट पहचान हैं। इनको बचाए रखना आवश्यक है। इसीलिए कवयित्री ने इन पर बल दिया है।

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‘माटी का रंग’ प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?

-’माटी का रंग’ प्रयोग करते हुए कवयित्री ने संथाल क्षेत्र के लोगों की मूल पहचान की ओर संकेत किया है। वह माटी से जुड़ी संस्कृति को बचाए रखने की पक्षपाती है।

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प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?


प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की निम्नलिखित बुराइयों की ओर संकेत करती है-

1 यहाँ के लोग शहरी प्रभाव में आते चले जा रहे हैं।

2. उनके जीवन में उत्साह का अभाव झलकता है।

3. वे अपने अस्त्र-शस्त्रों को त्यागते चले जा रहे हैं।

4. उनके जीवन में अविश्वास की भावना भरती जा रही है।

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इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है-से क्या आशय है?


इस अविश्वास भरे दौर में बचाने को बहुत कुछ बचा है-इससे कवयित्री का आशय यह है कि यदि संथाली समाज अपनी बुराइयों को दूर कर ले तो उसका मूल स्वरूप बहाल हो सकता है। अभी उनका परिवेश, उनकी भाषा, संस्कृति में अधिक बिगाड़ नहीं आया है। शहरी सम्यता का प्रभाव भी अभी सीमित मात्रा में है। अत: यहाँ के मूल चरित्र को बचाए रखना पूरी तरह से संभव है। इसे बचाना ही होगा।

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