निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
लाहुल-स्पीति का प्रशासन ब्रिटिश राज से भारत को जस का तस मिला। अंग्रेजों को यह 1846 ई. में कश्मीर के राजा गुलाबसिंह के जरिए मिला। अंग्रेज इनके जरिए पश्चिमी तिब्बत के ऊन वाले क्षेत्र में प्रवेश चाहते थे। तिब्बत में अंग्रेजी साम्राज्य के दूरगामी हित भी थे। जो भी हो, 1846 में कुल्लु लाहुल, स्पीति ब्रिटिश अधीनता में आए। पहले सुपरिंटेंडेंट के अधीन थे। फिर 1847 में वे कांगड़ा जिले में शरीक कर दिए गए। लद्दाख मंडल के दिनों में भी स्पीति का शासन एक नोनो द्वारा चलाया जाता था। ब्रिटिश भारत में भी कुल्लू के असिस्टेंट कमिश्नर के समर्थन से यह नोनो कार्य करता रहा। इसका अधिकार- क्षेत्र केवल द्वितीय दरजे के मजिस्ट्रेट के बराबर था। लेकिन स्पीति के लोग इसे अपना राजा ही मानते थे। राजा नहीं है तो दमयंती जी को रानी मानते हैं।
1. लाहुल स्पीति का शासन किसको, किससे कब मिला?
2. अंग्रेज स्पीति के जरिए क्या लाभ उठाना चाहते थे? उनका कार्य कौन करता था?
3. स्पीति के लोग किसे राजा-रानी मानते थे?


1. लाहुल-स्पीति का शासन पहले तो 1846 में कश्मीर के राजा गुलाब सिंह से अंग्रेजों को मिला। भारत के स्वतंत्र होने पर अंग्रेजों ने इसे जैसा का तैसा भारत को सौंप दिया।

2. अंग्रेज स्पीति के जरिए पश्चिमी तिब्बत के ऊन वाले -क्षेत्र में प्रवेश करना चाहते थे। तिब्बत में अंग्रेजी साम्राज्य के दूरगामी हित भी थे। इस क्षेत्र को 1847 में काँगड़ा जिले में शामिल कर लिया गया। स्पीति का शासन एक नोनो द्वारा चलाया जाता था। ब्रिटिश भारत में भी कुल्लू के असिस्टेंट कमिश्नर के समर्थन से यह नोनो कार्य करता रहा। इसका अधिकार क्षेत्र केवल दूसरे दर्जे कं मजिस्ट्रेट के समान था।

3. स्पीति के लोग नोनो को ही अपना राजा मानते थे। राजा के न होने पर दमयंती जी को अपनी रानी मानते थे।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
इस व्यथा की कथा इन पहाड़ों की ऊँचाई के आँकडों में नहीं कही जा सकती। फिर भी जो सुंदरता को -इंच में मापने के अभ्यासी हैं वे भला पहाड़ को कैसे बख्श सकते हैं। वे यह जान लें कि स्पीति मध्य हिमालय की घाटी है। जिसे वे हिमालय जानते हैं-स्केटिंग, सौंदर्य प्रतियोगिता, आइसक्रीम और खोले- मठुरे का कुल्लू-मनाली, शिमला, मसूरी, नैनीताल, श्रीनगर वह सब हिमालय नहीं है। हिमालय का तलुआ है। शिवालिक या पीरपंचाल या ऐसा ही कुछ उसका नाम है यह तलहटी है। रोहतांग जोत के पार मध्य हिमालय है। इसमें ही लाहुल-स्पीति की घाटियां हैं। इन घाटियों की औसत ऊंचाई नापी गई है। श्री कनिंघम के अनुसार लाहुल की समुद्र की सतह से ऊंचाई 10,235 फीट है। स्पीति की 12,986 फीट है। यानी लगभग 13,000 फीट तो औसत ऊंचाई है।
1. स्पीति के बारे में क्या जानना आवश्यक है?
2. क्या हिमालय नहीं है?
3. लाहुल-स्पीति की घाटियाँ कहाँ हैं? इनकी ऊँचाई क्या है?


1. स्पीति के बारे में यह जानना आवश्यक है कि पहाड़ों की व्यथा-कथा को केवल ऊँचाई के पैमाने से नहीं जाना जा सकता। सुंदरता एक अलग चीज है, इसे इंचों से नहीं मापा जा सकता। स्पीति को सुंदरता की दृष्टि से देखना होगा।
2. सामान्यत: लोग हिमालय को इस रूप में जानते हें-वहाँ स्केटिंग और सौंदर्य प्रतियोगिताएँ आयोजित होती हैं। वहाँ आइसक्रीम और छोले- भठुरे खाए जाते है। ये बातें तो कुरु-मनाली, शिमला, मसूरी, नैनीताल और श्रीनगर में होती हैं। वास्तव में यह सब हिमालय नहीं है, हिमालय का तलुआ है।
3. स्पीति मध्य हिमालय की घाटी है। लाहुल-स्पीति की घाटियों की औसत ऊँचाई नापी गई है। लाहुल की ऊँचाई समुद्र की सतह से 10,535 फीट है और स्पीति की 12,986 फीट है। औसत ऊँचाई 13,000 फीट है।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
स्पीति हिमालय प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील है। लाहुल-स्पीति का यह योग भी आकस्मिक ही है। इनमें बहुत योगायोग नहीं है। ऊँचे दरों और कठिन रास्तों के कारण इतिहास में भी कम रहा है। अलंध्य भूगोल यहां इतिहास का एक बड़ा कारक है। अब जबकि संचार में कुछ सुधार हुआ है तब भी लाहुल--स्पीति का योग प्राय: ‘वायरलेस सेट’ के जरिए, जो केलंग और काजा के बीच खड़कता रहता है। फिर भी केलंग के बादशाह को भय लगा रहता है कि कहीं काजा का सूबेदार उसकी अवज्ञा तो नहीं कर रहा है? कहीं बगावत तो नहीं करने वाला है? लेकिन सिवाय वारयरलेस सेट पर संदेश भेजने के वह कर भी क्या सकता है? वसंत में भी 170 मील जाना-आना कठिन है। शीत में प्राय: असंभव है।
1. स्पीति कहाँ स्थित है? इसका इतिहास में बहुत कम उल्लेख क्यों है?
2. अब किस क्षेत्र में सुधार हुआ है? इससे केलग के बादशाह को क्या भय लगा रहता है?
3. यहाँ के मौसम का आवागमन पर क्या प्रभाव पड़ता है?


1. स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की एक तहसील है। लाहुल-स्पीति का योग भी आकस्मिक ही है। यहाँ ऊँचे-ऊँचे दर्रे हैं, कठिन रास्ते हैं, अत: आना-जाना कठिन है। इसी कारण इतिहास में स्पीति का उल्लेख ‘न’ के बराबर ही हुआ है।

2. अब संचार के क्षेत्र में सुधार हुआ है। अब लाहुल-स्पीति का मेल वायरलेस सेट के जरिए हो जाता है। केलंग के राजा को यह भय लगा रहता है कि कहीं काजा क। सूबेदार उसकी आज्ञा का उल्लंघन तो नहीं कर रहा? कहीं कोई बगावत पर तो उतारू नहीं है।

3. स्पीति का मौसम बहुत ठंडा होता है। वसंत के अल्पकाल में भी 170 मील आना-जाना कठिन है। शीत ऋतु में तो यह प्राय: असंभव ही है।

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कृष्णनाथ के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनका साहित्यिक परिचय दीजिए।


साहित्यकार कृष्णनाथ का जन्म 1934 ई. में वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में हुआ।

उन्होंने काशी विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उनका झुकाव समाजवादी आदोलन और बौद्ध-दर्शन की ओर हो गया। वे समाजवादी आदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं तथा लोहिया एवं जयप्रकाश नारायण के साथ काफी समय बिताया। बौद्ध-दर्शन में उनकी गहरी पैठ है। वे अर्थशास्त्र के विद्ववान हैं और काशी विद्यापीठ में इसी विषय के प्रोफेसर भी रहे। अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भाषाओं पर उनका अधिकार है और दोनों की पत्रकारिता से भी उनका जुड़ाव रहा। हिन्दी की साहित्यिक पत्रिका कल्पना के संपादक-मंडल में वे कई साल रहे और अंग्रेजी के मैनकाइंड का कुछ वर्षों तक संपादन भी किया। राजनीति, पत्रकारिता और अध्यापन को प्रक्रिया से गुजरते-गुजरते वै बौद्ध-दर्शन की ओर मुड़े। भारतीय और तिब्बती आचार्यों के साथ बैठकर उन्होंने नागार्जुन के दर्शन और वज्रयानी परंपरा का अध्ययन शुरू किया। भारतीय चिंतक जे. कृष्णामूर्ति ने जब बौद्ध विद्वानों के साथ चिंतन-मनन शुरू किया तो कृष्णनाथ भी उसमें शामिल शे  बौद्ध-दर्शन पर कृष्णनाथ जी ने काफी कुछ लिखा है।

कृष्णनाथ ने हिमालय की यात्रा के दौरान उन स्थानों को खोजा, जिनका संबंध बौद्ध-दर्शन और भारतीय मिथकों से है। यहीं उनकी यात्रा--वृत्तांत की अनूठी विधा चमककर सामने आई। वे केवल पर्यटक की तरह यात्रा नहीं करते, बल्कि तत्त्ववेत्ता की तरह वहाँ का अध्ययन करते चलते हैं। वे उस स्थान से जुड़ी समस्त स्मृतियों को उघाड़कर सामने लाते हैं। उनके यात्रा-वृत्तांतों में नवीनता है। प्रमुख रचनाएँ- लद्दाख में राग-विराग? किन्नर धर्मलोक, स्पीति में बारिश, पृथ्वी-परिक्रमा, हिमालय यात्रा, अरुणाचल यात्रा, बौद्ध निबंधावली, हिन्दी और अंग्रेजी में कई पुस्तकों का संपादन।

सम्मान-लोहिया सम्मान।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:- 
यह पावस यहां नहीं पहुंचता है। कालिदास की वर्षा की शोभा विंध्याचल में है। हिमालय की इन मध्य की घाटियों में नहीं है। मैं नहीं चानजानता इसका लालित्य लाहुल-स्पीति के नर-नारी समझ भी पाएंगे या नहीं। वर्षा उनके संवेदन का अंग नहीं है। वह यह जानते नहीं हैं कि ‘बरसात में नदियां बहती हैं, बादल बरसते, मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं, जंगल हरे- भरे हो जाते हैं, अपने प्यारों से बिछुड़ी हुई स्त्रियां रोती-कलपती हैं, मोर नाचते हैं और बंदर चुप मारकर गुफाओं में जा छिपते हैं।’

अगर कालिदास यहाँ आकर कहें कि ‘अपने बहुत से सुंदर गुणों से सुहानी लगने वाली, स्त्रियों का जी खिलाने वाली, पेड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सखी तथा सभी जीवों का प्राण बनी हुई वर्षा ऋतु आपके मन की सब साधे पूरी करे’, तो शायद स्पीति के नर-नारी यही पूछेंगे कि यह देवता कौन है? कहाँ रहता है? यहाँ क्यों नहीं आता?
1. कहाँ पावस नहीं पहुँचता? इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
2. यहाँ के लोग क्या नहीं जानते?
3. कालिदास आकर क्या कहेगे?


1. स्पीति में पावस (वर्षा) नहीं पहुँचता है। अर्थात् यहाँ वर्षा न के बराबर ही होती है। कालिदास ने जिस वर्षा की शोभा का वर्णन किया है, उसे विंध्याचल में ही देखा जा सकता है, स्पीति घाटी में नहीं। लाहुल-स्पीति के लोग वर्षा की सुंदरता को पूरी तरह से अनुभव नहीं कर पाते। वर्षा उनकी संवेदना का अंग नहीं है।
2. लाहुल-स्पीति के लोग यह नहीं जानते कि बरसात में नदियाँ बहती हैं, बादल बरसते हैं, मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं, जंगल हरे- भरे हो जाते हैं, वियोगिनी स्त्रियाँ अपने प्रियजनों के लिए रोती-कलपती हैं, मोर नाचते हैं और बंदर गुफाओं में जा छिपते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने वर्षा होने और उसके आनंद को भोगा -जाँचा नहीं है।
3. कालिदास स्पीति में आकर यह कहें-! सुंदर और गुणवती स्त्रियों के जी को खिलाने वाली वर्षा, पेड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सहेली वर्षा, सभी जीवों की प्राण बनी वर्षा आपके मन की इच्छाओं को पूरी करे। इसे सुनकर स्पीति के लोग ऐसे देवता के बारे में पूछेंगे कि यह कौन-सा देवता है, कहाँ रहता है और आता क्यों नहीं है। अर्थात् वे वर्षा को देवता मानेंगे। उनका वास्ता ऐसे देवता से पड़ा ही नहीं है।

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