लेखक ने ऐसा इसलिए कहा होगा कि जब कुंई गाँव-समाज की सार्वजनिक जमीन पर बनती है तब उस जगह बरसने वाला पानी ही बाद में वर्ष भर की नमी की तरह सुरक्षित रहता है और इसी नमी से साल भर कुंइयों में पानी भरता है। नमी की मात्रा तो वहाँ हो चुकी वर्षा से तय हो जाती है। अब उस क्षेत्र में बनने वाली हर कुंई का अर्थ होता है-पहले से तय नमी का बँटवारा। इसीलिए निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में बनी कुंइयों पर समाज का अंकुश लगा रहता है। बहुत जरूरत पड़ने पर ही समाज नई कुंई के लिए अपनी स्वीकृति देता है।
चेजारों के साथ गाँव-समाज के व्यवहार में पहले की तुलना में आज क्या फर्क आया है? पाठ के आधार पर बताइए।
कुंई खोदने का काम करने वाले चेजारे कहलाते हैं। कुंई बन जाने पर चेजारों का भरपूर सम्मान किया जाता था। इस अवसर पर उत्सव मनाने की परंपरा गाँव-समाज में रही है। तब एक विशेष उत्सव का आयोजन होता था। चेजारों को विदाई के समय तरह-तरह की भेंटें दी जाती थीं। उनका संबंध उसी दिन समाप्त न होकर वर्ष भर चलता रहता था। उन्हें तीज-त्योहारों तथा विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर भी भेंट दी जाती थी। फसल आने पर खलिहान में उनके नाम से अनाज का एक अलग ढेर लगता था। अब उस स्थिति में फर्क आ गया है। अब तो सिर्फ मजदूरी देकर काम करवाने का रिवाज आ गया है। अब उन्हें काम की समाप्ति पर मजदूरी देकर विदा कर दिया जाता है।
दिनों-दिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने में यह पाठ आपकी कैसे मदद कर सकता है तथा देश के अन्य राज्यों में इसके लिए क्या उपाय हो रहे हैं? जानें और लिखें।
आजकल. दिनों-दिन पानी की कमी की समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है। नदियों का जल-स्तर घटता जा रहा है। पूरे पेयजल की आपूर्ति नहीं हो पाती। इस पाठ से हमें यह मदद मिलती है कि हम जल प्राप्ति के अन्य उपायों पर विचार करें। कुओं और कुंइयों से पानी प्राप्त करना भी एक सरल उपाय है। ट्यूबवैल लगाकर भी पानी पाया जा सकता है। विभिन्न राज्यों में वर्षा के जल का संचयन किया जा रहा है। इसके लिए तालाब बनाए जा रहे हैं। घरों की छतों पर भी पानी का संग्रह किया जा रहा है। वर्षा के जल के संचयन को अभी और बढ़ावा मिलना चाहिए तभी हम जल-संकट से निपट सकेंगे।
राजस्थान में कुंई किसे कहते हैं? इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्य कुओं की गहराई और व्यास में क्या अंतर होता है?
राजस्थान में कुंई छोटे कुएँ को कहते हैं। यह कुएँ? स्त्रीलिंग रूप है। यह छोटी केवल व्यास में होती है, गहराई में यह कुएँ से कम नहीं होती। राजस्थान में अलग-अलग स्थानों में एक विशेष कारण से कुंइयों की गहराई कुछ कम-ज्यादा होती है। कुंई का मुँह छोटा रखा जाता है। यदि कुंई का व्यास बड़ा होगा तो उसमें कम मात्रा का पानी ज्यादा फैल जाता है और तब उसे ऊपर निकालना कठिन होता है।
कुंई निर्माण से संबंधित निम्न शब्दों के बारे में जानकारी प्राप्त करें-
पालरपानी, पातालपानी, रेजाणीपानी।
पालरपानी- यह पानी का एक रूप है। यह पानी सीधे बरसात से मिलता है। यह धरातल पर बहता है और इसे नदी, तालाब आदि में रोका जाता है।
पातालपानी-यह पानी का दूसरा रूप है। यह वही भूजल होता है जिसे कुओं में से निकाला जाता है।
रेजाणीपानी- धरातल से नीचे उतरा, लेकिन पाताल में न मिलने वाला पानी रेजाणीपानी कहलाता है। वर्षा-जल को मापने के लिए ‘रेजा’ शब्द का उपयोग होता है और रेजा का माप धरातल पर हुई वर्षा को नहीं, धरातल में समाई वर्षा को मापता है।