इस संवाद के संदर्भ में हम गलती को बर्दाश्त करने वाले को ज्यादा गुनहगार मानते हैं, क्योंकि गलती का विरोध करने पर ही गुनहगार को अपनी गलती का अहसास होता है। कई बार गलती करने वाला अपने गुनाह की भयंकरता को समझ भी नहीं पाता, अत: विरोध करना आवश्यक है। हमें अन्याय को बिकुल बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।
जब रजनी डायरेक्टर ऑफ एजूकेशन के पास प्राइवेट ट्यूशन की समस्या लेकर जाती है और वह उनसे पूछती है कि इस मामले में उनका बोर्ड क्या कर रहा है? निदेशक (डायरेक्टर) महोदय इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेते और बड़े सहज भाव से लेते हुए उपर्युक्त उत्तर देते हैं। उनके विचार में ट्यूशन के काम में कुछ भी अनुचित प्रतीत नहीं होता।
हमें निदेशक महोदय का यह उत्तर बिल्कुल गलत लगता है। यह उत्तर तो चालू किस्म का प्रतीत होता है। उन्हें ट्यूशन को एक बीमारी मानकर तुरंत इस पर एक्शन लेने की बात कहनी चाहिए थी। ऐसा कहना तो ट्यूशन की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने वाली बात हुई, जिसे उचित नहीं कहा जा सकता।
रजनी ने अमित के मुद्दे को गंभीरता से लिया, क्योंकि -
वह अमित से बहुत स्नेह करती थी।
अमित उसकी मित्र लीला का बेटा था।
वह अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की सामर्थ्य रखती थी।
वह अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की सामर्थ्य रखती थी।
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वह अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की सामर्थ्य रखती थी।
(क) किसने किस प्रसंग में कही?
(ख) इससे कहने वाले की किस मानसिकता का पता चलता है।
(क) यह बात रजनी का पति हॉल में बैठकर रजनी का भाषण सुनते समय धीरे से फुसफुसाता है। रजनी टीचर्स से अपने हित के लिए संगठित होकर आदोलन चलाने को कह रही है।
(ख) इससे कहने वाले की इस मानसिकता का पता चलता है कि वे स्त्रियों द्वारा चलाए जा रहे आदोलनों को बहुत हल्के रूप में लेते हैं।
‘रजनी’ धारावाहिक की इस कड़ी की मुख्य समस्या क्या है? क्या होता अगर-
(क) अमित का पर्चा सचमुच खराब होता।
(ख) संपादक रजनी का साथ न देता।
इस कड़ी की मुख्य समस्या शिक्षा जगत में व्यवसायिकता का हावी होना है, जिसमें बच्चों को ट्यूशन कराने के लिए बाध्य किया जाता है और न कराने पर कम अंक दिए जाते हैं।
(क) यदि अमित का पर्चा सचमुच खराब होता तो यह समस्या उभर नहीं पाती।
(ख) संपादक यदि रजनी का साथ न देता तो यह समस्या इतनी ताकत से उभर नहीं पाती और सफलता संदिग्ध रहती।