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ये माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं - इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने युवा वर्ग से क्या आग्रह किया है?

इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने युवा वर्ग से यह आग्रह किया है कि वे माने की चोटियों के मध्य किलोल करें तो यहाँ की नीरसता में सरसता का संचार हो सके। बूढ़े लामा मंत्र का जाप चुपचाप करते रहते हैं। जिससे यहाँ उदासी छाई रहती है। युवक-युवतियों की मुक्त हँसी से यहाँ के वातावरण में ताजगी तथा उत्साह का संचार होगा। इस प्रकार लेखक ने युवा वर्ग से यहाँ आने का आग्रह किया है।

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स्पीति के लोग जीवनयापन के लिए किन कठिनाइयों का सामना करते हैं?


स्पीति के लोगों को जीवन-यापन के लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पहली कठिनाई तो आवागमन को लेकर ही है। दूसरी कठिनाई यहाँ लंबे समय तक ‘अत्यधिक ठंड पड़ने की है। यहाँ के लोग वर्ष में 8 -9 महीने तक शेष दुनिया से कटे रहते हैं। यहाँ लकड़ियों की भी कमी है, जिसके कारण घरों को गरम रखने में कठिनाई होती है। यहाँ व्यवसाय का भी अभाव है। बल्कि न के बराबर है। यहाँ वर्षा भी नाममात्र को होती है। फसल भी साल भर में एक ही होती है ।

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इतिहास में स्पीति का वर्णन नहीं मिलता। क्यों?


इतिहास में स्पीति का वर्णन नहीं मिलता क्योंकि यहाँ जाना आज बहुत कठिन रहा। ऊँचे दर्रों और कठिन रास्तों के कारण इतिहास में इसकी ओर ध्यान नहीं जा सका। इसमें न लाँघे जाने वाले भूगोल की भी बड़ी भूमिका रही है। वहीं का वर्णन इतिहास में मिलता है जहाँ की घटनाओं की जानकारी मिलती रहे। यह क्षेत्र ऐतिहासिक दृष्टि से उपेक्षित ही रहा। अत: इतिहास में इसका वर्णन नहीं मिलता।

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वर्षा यहां एक घटना है, एक सुखद संयोग है-लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?

लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि यहाँ वर्षा बहुत कम होती है, बल्कि कभी-कभी ही होती है। वर्षा ऋतु यहाँ मन की साध पूरी नहीं करती। वर्षा के अभाव में यहाँ की धरती सूखी, ठंडी और बंजर रहती है।

यहाँ वर्षा का होना एक घटना की तरह माना जाता है। इसे सुखद संयोग की तरह देखा जाता है। वर्षा को देखकर स्पीति के लोग विशेष प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। वर्षा उनके लिए बहुत शुभ होती है।

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लेखक माने श्रेणी का नाम बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर करने के पक्ष में क्यों हैं?


स्पीति बारालाचा पर्वत श्रेणी में दो चोटियाँ हैं। दक्षिण में जो श्रेणी है वह माने श्रेणी कहलाती है। लेखक ‘माने’ का अर्थ जानना चाहता है। उसे लगता है कि यह बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर है- ‘ओं मणि पक्षमें हुँ’। लेखक का कहना है कि यहाँ की पहाड़ियों में माने मंत्र का इतना जाप हुआ है कि इस श्रेणी का नाम माने मंत्र के नाम पर ही रख देना उचित है।

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