न हो कमीज तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे,
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए।
खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही,
कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए।


प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ दुष्यंतकुमारी गजल ‘साये में धूप’ से अवतरित हैं।

व्याख्या-कवि अभावों के मध्य जी लेने की बात कहता है। यदि हमारे पास पहनने के लिए कमीज नहीं होगी तो हम पाँवों को मोड़कर अपने पेट को ढक लेंगे। ऐसे लोग जीवन के सफर के लिए बहुत सही होते हैं।

हमें बेशक ईश्वर न मिल पाए तो न मिले। आदमी को उसका सपना ही काफी है। उसे सपने में कोई खूबसूरत दृश्य तो दिखाई देगा। यही उसके लिए काफी है।

विशेष- 1. कवि हसीन ख्वाब देखने का पक्षपाती है।

2. ‘पाँवों से पेट ढक लेना’ विशिष्ट प्रयोग है।

3. उर्दू शब्दों की भरभार है।

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वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता,
मैं बेकरार हूँ आवाज में असर के लिए।
तेरा निजाम है सिल दे जुबान शायर की,
ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए।
जिएँ तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले,

मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए।

प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ दुष्यंतुमार की गजल ‘साये में धूप’ से अवतरित हैं। व्याख्या-कवि उन लोगों पर कटाक्ष करता है जो कहते हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता। कवि के अनुसार पत्थर भी पिघल सकता है। कवि इस बात के लिए बेचैन है कि उसकी आवाज में असर पैदा हो सके। वह अपनी आवाज को असरदार बनाना चाहता है। वह राजनीतिज्ञों पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि उनका शासन है, अत: वे किसी शायर की जुबान को सिल सकते हैं अर्थात् अभिव्यक्ति पर पाबंदी लगा सकते हैं। गजल के किसी शेर के लिए इस प्रकार की सावधानी बहुत जरूरी भी है।

कवि चाहता है कि वह अपने बगीचे के नीचे जिए अर्थात् अपनी मन-मर्जी से जीवन बिताए। उस पर किसी का नियंत्रण नहीं होना चाहिए। इसी आजादी को पाने के लिए मरना भी पड़े तो गैर की गली में मरें।

विशेष- 1. कवि ने उर्दू के कठिन शब्दों का प्रयोग किया है, यथा-मुतमइन, निजाम, एहतियात, बहर आदि।

2. ‘गुलमोहर’ का प्रतीकात्मक प्रयोग हुआ है।

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कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए,
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए।


प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियां दुष्यंत कुमार की गजल ‘साये में धूप’ से अवतरित हैं। राजनीति और समाज में जो कुछ चल रहा है उसे खारिज करने और विकल्प की तलाश इस गजल का केन्द्रीय भाव है।

व्याख्या-कवि राजनीतिज्ञों पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि राजनीतिज्ञ लोगों को बड़े-बड़े लुभावने सपने दिखाते हैं। उन्होंने यह तय किया था कि प्रत्येक घर के लिए एक चिराग होगा अर्थात् हर घर को रोशनी प्रदान की जाएगी। इन घरों में रहने वालों के जीवन में खुशहाली आएगी। पर उनका आश्वासन थोथा होकर रह गया। यथार्थ स्थिति यह है कि पूरे शहर के लिए भी एक चिराग नहीं है। यह है कथनी और करनी का अंतर। पूरा शहर अंधकार में डूबा है अर्थात् अभावों में रह रहा है।

इस बनावटी समाज की दुनिया बड़ी विचित्र है। यहाँ तो पेड़ों की छाया में भी धूप लगती है अर्थात् यहाँ लोगों को शांति नहीं मिल पाती। यहाँ से कहीं दूर चल देना चाहिए। यह जाना कुछ देर के लिए न होकर पूरी उम्र भर के लिए होना चाहिए। इस समाज में रहना ठीक नहीं है।

विशेष- 1. राजनीतिज्ञों की कथनी-करनी का अंतर दर्शाया गया है।

2. दरख्तों के साये में धूप लगना ‘विरोधाभासी स्थिति है, अत: विरोधाभास अलंकार का प्रयोग है।

3. उर्दू-शब्दों का भरपूर प्रयोग किया गया है, जो गजल विधा के लिए उपयुक्त भी है।

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‘साये में धूप’ गजल का प्रतिपाद्य लिखिए।


यह दुष्यंत कुमार की प्रसिद्ध गजल है। यह पूरी गजल एक खास मन:स्थिति में लिखी गई है। राजनीति और समाज में सब कुछ सही नहीं चल रहा है। कवि उसे खारिज करता है और अन्य विकल्प की तलाश करता है। यह भाव इस गजल का केन्द्रीय सूत्र बन गया है। कवि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नहीं खोना चाहता। वह ख्वाब की दुनिया में कुछ क्षण के लिए सुख भोग लेना चाहता है। वह बर्फ को पिघलाने में विश्वास प्रकट करता है। उसे गुलमोहर के वृक्ष के नीचे शांति एवं सुख का अहसास होता है।

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दुष्यंत कुमार के जीवन का परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।


जीवन-परिचय-दुष्यंत कुमार नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म। सितम्बर, सन् 1933 को राजापुर-नवादा, जिला बिजनौर में हुआ था। उनके बचपन का नाम दुष्यंत नारायण था। इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से एमए की उपाधि प्राप्त की। उनके साहित्यिक जीवन का प्रारंभ भी प्रयाग से ही हुआ। उनके घनिष्ठ मित्रों में कमलेश्वर, माकण्डेय आदि थे। वे ‘परिमल’ की गोष्ठियों में भाग लेते रहे। ‘नये पत्ते’ जैसी महत्वपूर्ण पत्रिका के साथ वे जुड़े रहे। उन्होंने कुछ समय तक आकाशवाणी में भी नौकरी की। बाद में सहायक निदेशक के रूप में मध्य प्रदेश के भाषा विभाग में कार्य किया। वे अधिक दिन तक जीवित न रह सकें। तैंतालीस वर्ष की अल्पायु में ही 30 दिसम्बर, 1975 को भोपाल में उनकी मृत्यु हो गई।

साहित्यिक विशेषताएं: दुष्यंत कुमार ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम. ए. किया। उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ इलाहाबाद से ही हुआ। उन्होंने ‘परिमल’ की गोष्ठियों में सक्रिय रूप से भाग लिया और ‘नए पत्ते’ जैसे महत्त्वपूर्ण पत्र से जुड़े रहे। दुष्यंत कुमार ने अपनी आजीविका के लिए आकाशवाणी में नौकरी की और देश के अनेक आकाशवाणी केंद्रों पर हिन्दी कार्यक्रमों को सँभालने का महत्वपूर्ण कार्य किया। बाद में सहायक निदेशक के रूप में मध्य प्रदेश के भाषा विभाग से जुड़ गए।

दुष्यंत कुमार का लेखन सहज और स्वाभाविक था, जिससे उन्हें लोकप्रियता प्राप्त हुई। हिन्दी कविता में गीत और गजल लिखने में दुष्यंत कुमार का कोई सानी नहीं था। उन्होंने कविता, के क्षेत्र में कई नए प्रयोग किए, किन्तु उनकी विशिष्ट देन है हिन्दी गजल। अपनी गजलों के बारे में उन्होंने लिखा है-’ मैं स्वीकार करता हूँ कि गजल को किसी भूमिका की जरूरत नहीं होती...मैं प्रतिबद्ध कवि हूँ..यह प्रतिबद्धता किसी पार्टी से नहीं, आज के मनुष्य से है और मैं जिस आदमी के लिए लिखता हूँ, यह भी चाहता हूँ कि वह आदमी उसे पड़े और समझे।’

श्री दुष्यंत कुमार नई कविता के एक प्रतिभाशाली कवि थे। उन्होंने कविता के क्षेत्र में अनेक सफल प्रयोग किए, किन्तु उनकी ख्याति का आधार रहे हैं-गीत और गजल। अन्य विधाओं के समान गजल भी हिन्दी के लिए नई रही है। गजल लिखने में जो सलीका और अंदाज होना चाहिए, वह दुष्यंत कुमार में हमें देखने को मिलता है।

दुष्यंत कुमार का लेखन सहज एवं स्वाभाविक था। उन्होंने कविता के क्षेत्र में कई नए प्रयोग किए। वे मूलत: कवि थे, किन्तु उन्होंने उपन्यास और नाटक-विद्या में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। ‘एक कंठ विषपायी’ दुष्यंत कुमार का एक महत्वपूर्ण गीति नाट्य है। मुख्य काव्य रचनाएँ: सूर्य का स्वागत, आवाजों के घेरे, साये में धूप, जलते हुए वन का वसंत आदि।

उपन्यास-छोटे-छोटे सवाल, गिन में एक वृक्ष, दोहरी जिंदगी।

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