रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकार कर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो किंतु गाँव के अर्द्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूँदते समय कोई तकलीफ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे।

रात्रि में पहलवान की ढोलक किन्हें ललकार लगाती थी?

‘सजीवनी शक्ति’ से लेखक का क्या आशय है?

ढोलक का गाँव के लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता था?

ढोलक का गाँव के लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता था?


रात्रि में पहलवान की ढोलक रात्रि की विभीषिका को और गाँव वालों को ललकार लगाती थी।

ढोलक एक ऐसी संजीवनी शक्ति है जो अर्द्धमृत को जीवित कर दे जो बच्चे और बूढ़ों में स्फूर्ति उमंग ला दे अर्थात् मरते हुओं में भी जान डाल दे।

ढोलक गाँव वालों की संजीवनी शक्ति का काम करती और वहाँ के लोगों के हृदय में जो भय का सन्नाटा रहता दे उसे चीरती।

गाँव में गरीबी और कष्ट भरे थे। रात को सन्नाटा रहता था। महामारी ने उसकी विभीषिका को और डरावना बना दिया था। लोग रात भर जागते रहते थे।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई-’पागल है पागल, मरा-ऐं!’ मरा-मरा!....पर वाह रे बहादुर। लुट्टन बड़ी सफाई से आक्रमण को संभालकर निकलकर उठ खड़ा हुआ और पैंतरा दिखाने लगा। राजा साहब ने कुश्ती बंद करवाकर लुन को अपने पास बुलवाया और समझाया। अंत में, उसकी हिम्मत की प्रशंसा करते हुए, दस रुपए का नोट देकर कहने लगे- “जाओ, मेला देखकर घर जाओ।”
1. शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली क्यों मच गई?
2. श्याम नगर के राजा का क्या नाम था? उसे क्या प्रिय लगता था?
3. राजा साहब ने बीच में ही कुश्ती क्यों रुकवा दी?
4. राजा साहब ने लुट्टन सिंह पहलवान को कितने रुपये का नोट दिया और क्यों?


1. एक बार श्यामनगर में मेला लगा हुआ था। लुट्टन सिंह भी वहाँ मेला देखने गया। वहाँ दंगल लगा हुआ था जिसमें शेर के बच्चे के नाम से एक मशहूर पहलवान आया हुआ था। आज तक उसकी बराबरी का कोई पहलवान नहीं था लेकिन ढोल की धुन से जोश में आकर लुट्टन सिंह ने उस शेर के बच्चे को चुनौती दे दी। इसी चुनौती को देखकर शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई।
2. श्यामनगर के राजा का नाम श्यामानंद था। उसे शिकार प्रिय लगता था। इसके साथ-साथ उसे दंगल का भी बहुत शौक था।
3. राजा साहब चाँद सिंह पहलवान को जानता था। वह उसके दावपेंच पहले भी देख चुका था। चाँद सिंह पहले ही शेर के बच्चे की उपाधि प्राप्त कर चुका था लेकिन लुट्टन सिंह पहली बार ही दंगल में लड़ा था। इसीलिए राजा साहब ने कुश्ती बीच में रुकवा दी।
4. राजा साहब ने लुट्टन सिंह पहलवान को दस रुपये का नोट दिया क्योंकि उसने ‘शेर के बच्चे’ नामक बलशाली पहलवान से लड़ने की हिम्मत की थी।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
एक बार वह ‘दंगल’ देखने श्याम नगर मेला गया। पहलवानों की कुश्ती और दाँव-पेंच देखकर उससे नहीं रहा गया। जवानी की मस्ती और ढोल की ललकारती हुई आवाज ने उसकी नसों में बिजली उत्पन्न कर दी। उसने बिना-कुछ सोचे-समझे दंगल में ‘शेर के बच्चे’ को चुनौती दे दी।

‘शेर के बच्चे’ का असल नाम था चाँव सिंह। वह अपने गुरु पहलवान बादल सिंह के साथ, पंजाब से पहले-पहल श्याम नगर मेले में आया था। सुंदर जवान, अंग-प्रत्यंग से सुन्दरता टपक पड़ती थी। तीन दिनों में ही पंजाबी और पठान पहलवानों के गिरोह के अपनी जोड़ी और उप्र के सभी पट्टों को पछाड़कर उसने ‘शेर के बच्चे’ की टायटिल प्राप्त कर ली थी। इसलिए वह दंगल के मैदान में लंगोट लगाकर एक अजीब किलकारी भरकर छोटी दुलकी लगाया करता था। देशी नौजवान पहलवान, उससे लड़ने की कल्पना से भी घबराते थे। अपनी टायटिल को सत्य प्रमाणित करने के लिए ही चाँदसिंह बीच-बीच में दहाड़ता फिरता था।
1. एक बार कौन, कहाँ गया? वहाँ का उस पर क्या प्रभाव पड़ा?
2. किस बात से उत्साहित होकर उसने किसे चुनौती दे डाली?
3. ‘शेर का बच्चा’ कौन था? उसके बारे में बताइए।
4. वह अपने टायटिल को सही प्रमाणित करने के लिए क्या करता था?



1. एक बार लुट्टन पहलवान दंगल देखने श्याम नगर मेला गया। वहाँ उसने पहलवानों की कुश्ती और दाँव-पेंच देखे। इन्हें देखकर उससे रहा नहीं गया।
2. जवानी की मस्ती और ढोल की ललकारती आवाज ने लुट्टन पहलवान की नसों में बिजली उत्पन्न कर दी। उसने बिना सोचे-समझे दंगल में आए अन्य पहलवान ‘शेर के बच्चे’ को चुनौती दे डाली।
3. ‘शेर के बच्चे’ का असली नाम चाँदसिंह था। वह एक पहलवान था। वह अपने गुरु पहलवान बादलसिंह के साथ पंजाब से आया था। वह पहली बार श्याम नगर आया था। वह सुन्दर और जवान था। उसने कई पंजाबी और पठान पहलवानों को पछाड़कर ‘शेर के बच्चे’ की उपाधि प्राप्त की थी।
4. चाँद पहलवान दंगल के मैदान में लंगोट लगाकर एक अजीब किलकारी भरकर छोटी दुलकी लगाया करता था। वह अपनी टायटिल को सत्य प्रमाणित करने के लिए बीच-बीच में दहाड़ता रहता था।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
“वहीं दफना वे, बहादुर!” बादल सिंह अपने शिष्य को उत्साहित कर रहा था।

लुट्टन की आँखें बाहर निकल रही थीं। उसकी छाती फटने-फटने को हो रही थी। राजमत, बहुमत चाँद के पक्ष में था। सभी चाँद को शाबाशी दे रहे थे। गन के पक्ष में सिर्फ ढोल की आवाज थी, जिसके ताल पर वह अपनी शक्ति और दाँव-पेंच की परीक्षा ले रहा था-अपनी हिम्मत को बढ़ा रहा था। अचानक ढोल की एक पतली आवाज सुनाई पड़ी- ‘धाक-धिना, तिरकट-तिना, धाक-धिना, तिरकट-तिना..!!’

कुछन को स्पष्ट सुनाई पड़ा, ढोल कह रहा था-”दाँव काटो, बाहर हो जा दाँव काटो, बाहर हो जा!!”

लोगों के आश्चर्य की सीमा नहीं रही, लुट्टन दाँव काटकर बाहर निकला और तुरन्त लपककर उसने चाँद की गर्दन पकड़ ली।

“वाह रे मिट्टी के शेर!”
1. बादलसिंह ने किससे. किसके लिए क्या कहा?
2. लुट्टन की क्या दशा हो रही थी?
3. लुट्टन को ढोल की क्या आवाज सुनाई दी और उसने उसका क्या अर्थ लिया?
4. लोगों को किस बात पर आश्चर्य हुआ?



1. बादलसिंह ने अपने शिष्य चाँदसिंह (शेर का बच्चा) से कहा कि वह लुट्टन को कुश्ती में वहीं दफना दे अर्थात् बुरी तरह पराजित कर दे l
2. लुट्टन की आँखें बाहर निकल रही थीं। उसकी छाती फटने को हो रही थी। उस समय सभी लोग चाँद के पक्ष में थे। वे उसी को शाबासी दे रहे थे।
3. लुट्टन ने ढोल पर एक पतली आवाज सुनी-’धाक-धिना, तिरकट-तिना धाक-धिना, तिरकट तिना’। लुट्टन ने ढोल की इस आवाज का यह अर्थ लिया-’दाँव काटो, बाहर हो जा, दाँव काटो बाहर हो जा।’
4. लुट्टन ने ढोल की आवाज के मुताबिक किया और दाँव काटकर चाँद की गर्दन पकड़ ली। लोगों को यह दृश्य देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उन्हें ऐसी उम्मीद न थी।

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विजयी लुट्टन जूदता-फाँदता, ताल-ठोंकता सबसे पहले बाजे वालों की ओर दौड़ा और ढोलों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। फिर दौड़कर उसने राजा साहब को गोद में उठा लिया। राजा साहब के कीमती कपड़े मिट्टी में सन गए। मैनेजर साहब ने आपत्ति की- “हें-हें…अरे-रे!” किन्तु राजा साहब ने स्वयं उसे छाती से लगाकर गद्गद् होकर कहा- “जीते रहो, बहादुर! तुमने मिट्टी की लाज रख ली!”

पंजाबी पहलवानों की जमायत चाँदसिंह की आँखें पोंछ रही थी। लुट्टन को राजा ने पुरस्कृत ही नहीं किया, अपने दरबार में सदा के लिए रख लिया। तब से लुट्टन राज-पहलवान हो गया और राजा साहब उसे लुट्टन सिंह कहकर पुकारने लगे। राज-पंडितों ने मुँह बिचकाया- “हुजूर! जाति का दुसाध…सिंह…!”

मैनेजर साहब क्षत्रिय थे। ‘क्लीन-शेव्ड’ चेहरे को संकुचित करते हुए, अपनी शक्ति लगाकर नाक के बाल उखाड़ रहे थे। चुटकी से अत्याचारी बाल को रगड़ते हुए बोले- “हाँ सरकार, यह अन्याय है!”

राजा साहब ने मुस्कुराते हुए सिर्फ इतना ही कहा-”उसने क्षत्रिय का काम किया है।”

कुश्ती में विजयी होकर लुट्टन ने क्या किया?

उसके व्यवहार पर किसने आपत्ति की और क्यों?

राजा ने लुट्टन के साथ क्या व्यवहार किया और उस पर किसने ऐतराज किया?

राजा ने लुट्टन के साथ क्या व्यवहार किया और उस पर किसने ऐतराज किया?

मैनेजर ने क्या कहकर विरोध किया?


कुश्ती में विजयी होकर लुट्टन ने ताल-ठोंककर, ढोल वालों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया और फिर दौड़कर उसने राजा साहब को गोद में उठा लिया।

उसके इस प्रकार के व्यवहार पर मैनेजर साहब ने आपत्ति की क्योंकि इससे राजा साहब के कीमती कपड़े मिट्टी में सन गए थे।

राजा ने लुट्टन को छाती से लगा लिया और उसे आशीर्वाद देते हुए कहा था- “जीते रही, बहादुर! तुमने मिट्टी की लाज रख ली।” जब राजा ने लुट्टन को दरबार में रखने की घोषणा की तथा उसे लुट्टनसिंह कहकर पुकारा तब राज-पंडितों ने मुँह बिचकाया और अपना ऐतराज प्रकट करते हुए कहा-यह तो जाति का दुसाध है।

मैनेजर ने यह कहकर विरोध किया-यह अन्याय है।

राजा साहब ने यह कहकर लुट्टन का बचाव किया कि उसने काम तो क्षत्रिय का किया है। अत:वह इस सम्मान का अधिकारी है।

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