नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,
चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।
हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
वह तो चुराए लिए जातीं मेरी आँखें
नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें।
प्रसंग: प्रस्तुत कविता ‘बगुलों के पंख’ उमाशंकर जोशी द्वारा रचित है। यह कविता एक सुदंर दृश्य की कविता है। सौदंर्य के प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए कवि कई युक्तियाँ अपनाता है। वह सौदंर्य का चित्रात्मक वर्णन तो करता ही है, साथ ही मन पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का वर्णन भी करता है।
व्याख्या: कवि काले बादलों से भरे आकाश में पंक्ति बनाकर उड़ते सफेद बगुलों को देखता है। कवि की आँखें उन्हीं पर टिकी हैं। ये बगुले कजरारे बादलों के ऊपर तैरती साँझ की सफेद काया के समान प्रतीत होते हैं। यह दृश्य इतना नयनाभिराम है कि धीरे-धीरे कवि इसकी माया में उलझकर रह जाता है। सौंदर्य का यह प्रभाव धीरे-धीरे कवि को अपने आकर्षण जाल में बाँध लेता है। कवि सब कुछ भूलकर उसी में अटका-सा रह जाता है। कवि कहता है कि इस सौंदर्य के प्रभाव को रोको अर्थात् कवि इस माया से अपने को बचाने की गुहार लगाता है। वह तो कवि की आँखों को ही चुराए लिए जाता है। आकाश में पंक्तिबद्ध जाते बगुलों के पंखों में कवि की आँखें अटक कर रह जाती हैं। वैसे यह सौंदर्य से स्वयं को बाँधने और बिंधने की चरम स्थिति का द्योतक है।
विशेष: 1. सौंदर्य के ब्यौरों का चित्रात्मक वर्णन है।
2. सौंदर्य के मन पर पड़ने वाले प्रभाव का भी चित्रण है।
3. वस्तुगत और आत्मगत संयोग की यह युक्ति पाठक को मूल-सौंदर्य के निकट ले जाती प्रतीत होती है।
4. बिंब योजना प्रभावी बन पड़ी है।
5. ‘हौल-हौले’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
6. सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग है।
कवि ने कागज की तुलना किससे की है और क्यों?
कवि ने कागज की तुलना अपने छोटे चौकोने खेत से की है। कागज भी चौकोर होता है। वह खेत के समान ही लगता है।
छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज का एक पन्ना,
कोई अँधड कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया।
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया निःशेष;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।
झूमने लगे फल,
रस अलौकिक,
अमृत धाराएँ फूटतीं
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेरा खेत चौकोना।
प्रसगं: प्रस्तुत पक्तियाँ उमाशंकर जोशी द्वारा रचित कविता ‘छोटा मेरा खेल’ से अवतरित हैं। इस छोटी-सी कविता में कवि-कर्म के हर चरण को बाँधने की कोशिश की गई है।
व्याख्या: कवि समाज के जिस पन्ने (पृष्ठ) पर अपनी रचना शब्दबद्ध करता है वह उसे अपना छोटा चौकोर खेत के समान लगता है। खेत में जब कही से कोई अँधड़ आया तो वहाँ बीज बोकर चला गया। अँधड़ अपने साथ बीज उड़ाकर लाया था उसे खेत में बोकर चला गया। इसी प्रकार जब हृदय में भावों का अँधड़ आता है अर्थात् भावनात्मक आँधी चलती है तब हृदय में विचारों का बीज डल जाता है और वही आगे चलकर अंकुरित हो जाता है। विचारों का यह बीज कल्पना के रसायन पीकर अर्थात् कल्पना का सहारा लेकर विकसित होता है। बीज तो गलकर नि:शेष हो जाता है, पर उसमें से अंकुर फूट निकलते हैं और छोटा पौधा नए कोमल पत्तों एवं फूलों से लदकर झुक जाता है। रचना-प्रक्रिया में भी इसी स्थिति से गुजरना पड़ता है। हृदय में जो विचार बीज रूप में आता है वही कल्पना का आश्रय लेकर विकसित होकर रचना का रूप ले लेता है। यह बीज रचना और अभिव्यक्ति का माध्यम बन जाता है। इस रचना में शब्दों के अंकुर फूट निकलते हैं। अंतत: कृति (रचना) एक संपूर्ण स्वरूप धारण कर लेती है। इस प्रक्रिया मे कवि स्वयं विगलित हो जाता है।
फिर पौधा झूमने लगता है, उस पर फल लग जाते हैं। उनमें रस समा जाता है और रस की अमृत धाराएँ फूट निकलती हैं। इसी प्रकार साहित्यिक रचना से भी अलौकिक रस- धारा फूटने लगती है। यह उस क्षण में होने वाली रोपाई का ही परिणाम है। साहित्यिक रचना से भी अमृत धाराएँ निकलने लगती हैं। यह रस- धारा अनंत काल तक फसल की कटाई होने पर भी कम नहीं होती अर्थात् उत्तम साहित्य कालजयी होता है और असंख्य पाठकों द्वारा बार-बार पढ़ा जाता है। फिर भी उसकी लोकप्रियता कम नहीं होती। खेत में पैदा होने वाला अन्न तो कुछ समय के बाद समाप्त हो जाता है, किंतु साहित्य का रस कभी नहीं चुकता। वह सदा बना रहता है।
विशेष: 1. कविता में प्रतीकात्मकता का समावेश है। कवि ने खेत और उसकी उपज के माध्यम से अपने कवि-कर्म की बात कही है।
2. पूरी कविता रूपक अलंकार का श्रेष्ठ उदाहरण है क्योंकि खेती के रूपक में कवि-कर्म को बाँधा गया है।
3. ‘पल्लव-पुष्पों’ में अनुप्रास अलंकार है।
4. थोड़े शब्दों में बहुत बड़ी बात समझाई गई है।
5. खड़ी बोली का प्रयोग है।
6. भाषा सरल एवं सुबोध है।
कवि के अनुसार बीज की रोपाई का क्या परिणाम होता है?
कवि के अनुसार बीज की रोपाई करने के बाद वह अंकुरित होता है। इसके बाद वह पुष्पित-पल्लवित होता है।
उमाशंकर जोशी का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उमाशंकर जोशी का जन्म सन् 1911 ई. में गुजरात में हुआ और उनकी मृत्यु 1988 ई. में हुई। बीसवीं सदी की गुजराती कविता और साहित्य को नई भंगिमा और नया स्वर देने वाले उमाशंकर जोशी का साहित्यिक अवदान पूरे भार तीय साहित्य के लिए भी महत्वपूर्ण था। उनको परंपरा का गहरा ज्ञान था। कालिदास के ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ और भवभूति के ‘उत्तररामचरितम्’ का उन्होंने गुजराती में अनुवाद किया। ऐसे अनुवाद गुजराती साहित्य की अभिव्यक्ति क्षमता को बढ़ाने वाले थे। बतौर कवि उमाशंकर जी ने गुजराती कविता को प्रकृति से जोड़ा आम जिंदगी के अनुभव से परिचित कराया और नई शैलियाँ दीं। जीवन के सामान्य प्रसंगों पर सामान्य बोलचाल की भाषा में कविता लिखने वाले भारतीय आधुनिकतावादियो में अन्यतम हैं जोशी जी। कविता के साथ-साथ साहित्य की दूसरी विधाओं में भी उनका योगदान बहुमूल्य है खासकर साहित्य की आलोचना में। निबंधकार के रूप में गुजराती साहित्य में बेजोड़ माने जाते हैं। उमाशंकर जोशी उन साहित्यिक व्यक्तित्व में थे जिनका भारत की आजादी की लड़ाई से रिश्ता रहा। आजादी की लड़ाई के दौरान वे जेल भी गए।
प्रमुख रचनाएँ: विश्व शांति गंगोत्री निशीथ, प्राचीना आतिथ्य, वसंत वर्षा महाप्रस्थान अभिज्ञा (एकांकी), सापनाभारा शहीद (कहानी), श्रावणी मेणो, विसामो (उपन्यास); पारकांजण्या (निबंध); गोष्ठी, उघाडीबारी, क्लांतकवि, म्हारासॉनेट, स्वप्नप्रयाण (संपादन) सन् 47 से संस्कृति का संपादन।
संकलित कविताएँ-
1. छोटा मेरा खेत।
2. बगुलों के पंख।