निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-   
वे सचमुच ऐसे दिन होते जब गली-मुहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गरमी में भुन-मून कर त्राहिमाम कर रहे होते, जेठ के दसतपा बीत कर आषाढ़ का पहला पखवारा भी बीत चुका होता पर क्षितिज पर कहीं बादल की रेख भी नहीं दीखती होती, कुएँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहत कम पानी आता और आता भी तो आधी रात को भी मानो खौलता हुआ पानी हो। शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत खराब होती थी। जहाँ जुताई होनी चाहिए, वहाँ खेतों की मिट्टी सूखकर पत्थर हो जाती, फिर उसमें पपड़ी पड़ कर जमीन फटने लगती, लू ऐसी कि चलते-चलते आदमी आधे रास्ते में लू खा कर गिर पड़े। ढोर-उंगर प्यास के मारे मरने लगते लेकिन बारिश का कहीं नाम निशान नहीं, ऐसे में पूजा-पाठ कथा विधान सब कर के लोग जब हार जाते तब अंतिम उपाय के रूप में निकलती यह इंदर सेना। वर्षा के बादलों के स्वामी हैं इंद्र और इंद्र की सेना टोली बाँधकर कीचड़ में लथपथ निकलती, पुकारते हुए मेघों को, पानी माँगते हुए प्यासे गलों और सूखे खेतों के लिए।
1. पाठ तथा लेखक का नाम बताइए।
2. आषाढ़ में कैसा मौसम हो जाता है?
3. गाँव की हालत के विषय में लेखक क्या कहता है?
4. गाँवों में इंदर सेना क्या करती है?


1. पाठ का नाम: काले मेघा पानी दे।
   लेखक का नाम: धर्मवीर भारती।

2. आषाढ़ के मौसम में बारिश होती है, परंतु गर्मी अधिक होती है। लोग त्राहि-त्राहि करने लगते हैं। कुएँ सूखने लगते हैं। तब आधी रात को भी पानी खौलता हुआ प्रतीत होता है।

3. आषाढ़ के महीने में बारिश न होने पर गांवों की दशा अत्यंत दयनीय होती है। खेतों की मिट्टी सूखकर पत्थर हो जाती है। लू चलने के कारण पशु और आदमी बीमार पड़ जाते हैं।

4. गाँवों में बारिश के लिए ‘इंदर सेना’ बनाई जाती है। इंद्र की सेना टोली बाँधकर कीचड़ में लथपथ होकर मेघों से पानी के लिए प्रार्थना करती है।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये:- 
उछलते-कूदते, एक-दूसरे को धकियाते ये लोग गली में किसी दुमहले मकान के सामने रुक जाते, “पानी दे मैया, इंदर सेना आई है।” और जिन घरों में आखीर जेठ या शुरू आषाढ़ के उन सूखे दिनों में पानी की कमी भी होती थी, जिन घरों के कुएँ भी सूखे होते थे, उन घरों से भी सहेज कर रखे हुए पानी में से बाल्टी-बाल्टी या धड़े भर-भर कर इन बच्चों को सर से पैर तक तर कर दिया जाता था। ये भीगे बदन मिट्टी में लोट लगाते थे, पानी फेंकने से पैदा हुए कीचड़ में लथपथ हो जाते थे। हाथ, पाँव, बदन, मुँह, पेट सब पर गंदा कीचड़ मल कर फिर हाँक लगाते “बोल गंगा मैया की जय” और फिर मंडली बाँधकर उछलते-कूदते अगले घर की ओर चल पड़ते बादलों को टेरते, “काले मेधा पानी दे।” वे सचमुच ऐसे दिन होते जब गली-मुहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गर्मी में मून- भुन कर त्राहिमाम कर रहे होते, जेठ के दसतपा बीत कर आषाढ़ का पहला पखवारा भी बीत चुका होता पर क्षितिज पर कहीं बाबल की रेख भी नहीं दीखती होती, कुएँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहुत कम पानी आता और आता भी तो आधी रात को भी मानो खौलता हुआ पानी हो। शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत खराब होती थी। जहाँ जुताई होनी चाहिए वहाँ खेतों की मिट्टी सूख कर पत्थर हो जाती, फिर उसमें पपड़ी पड़ कर जमीन फटने लगती, लू ऐसी कि चलते-चलते आदमी आधे रास्ते में लू खाकर गिर पड़े। ढोर-उंगर प्यास के मारे मरने लगते लेकिन बारिश का कहीं नाम निशान नहीं, ऐसे में पूजा-पाठ कथा-विधान सब कर के लोग जब हार जाते तब अंतिम उपाय के रूप में निकलती यह इंदर सेना।
1. इंदर सेना कौन थी? यह क्या करती थी?
2. लोग इनको कौन- सा पानी देते थे और ये क्या करते थे?
3. उस समय गाँव में कैसा वातावरण उपस्थित रहता था?
4. खेतों की क्या दशा होती थी?



1. गाँव के 10-15 वर्ष के लड़कों की मंडली को इंदर सेना कहा जाता था। ये लड़के एक-दूसरे को धकियाते, उछलते-कूदते गली-गली में घूमकर मकानों के सामने रुककर पानी माँगते थे। वे कहते-’पानी दे मैया, इंदर सेना आई है’।
2. जेठ-आषाढ़ के महीनों में सूखा पड़ता था और उन दिनों पानी का भयंकर अकाल पड़ जाता था। तब लोग घरों मे घड़े या बाल्टी में पानी सहेज कर रखते थे। उसी पानी को वे इन लड़कों के ऊपर फेंकते थे। ये भीगे बदन मिट्टी में लोट लगाते थे और कीचड़ में लथपथ हो जाते थे। फिर गंगा मैया की जय लगाते थे।
3. उस समय गाँव में लोग गर्मी से भुन कर त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे होते थे। आकाश में कही भी बादल दिखाई नहीं देते थे। कुएँ सूख गए होते। नलों में बहुत कम पानी आता था।
4. उन दिनों खेतों की मिट्टी सूखकर पत्थर हो जाती थी फिर पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती थी। लू के मारे लोग गश खाकर गिर पड़ते थे।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-   
वर्षा के बादलों के स्वामी हैं इंद्र और इंद्र की सेना टोली बाँधकर कीचड़ में लथपथ निकलती, पुकारते हुए मेघों को, पानी माँगते हुए प्यासे गलों और सूखे खेतों के लिए। पानी की आशा पर जैसे सारा जीवन आकर टिक गया हो। बस एक बात मेरे समझ में नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी कमी है तो लोग घर में इतनी कठिनाई से इकट्टा करके रखा हुआ पानी बाल्टी-बाल्टी कर इन पर क्यों फेंकते हैं। कैसी निर्मम बरबादी है पानी की। वेश की कितनी क्षति होती है इस तरह के अंधविश्वासों से। कौन कहता हे इन्हें इंद्र की सेना? अगर इंद्र महाराज से ये पानी दिलवा सकते हैं तो खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेते? क्यों मुहल्ले भर का पानी नष्ट करवाते घूमते हैं, नहीं यह सब पाखंड हे। अंधविश्वास है। ऐसे ही अंधविश्वासों के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए और गुलाम बन गए।
1. वर्षा के बादलों का स्वामी कौन है? उसकी सेना क्या माँगती फिरती थी। 
2. लेखक की समझ में क्या बात नहीं आती?
3. लेखक किस अंधविश्वास पर दु:खी होता?
4. अंधविश्वासों का क्या नतीजा हमें भुगतना पड़ा?


1. वर्षा के बादलों का स्वामी इंद्र माना जाता है। इंद्र की सेना अर्थात् लडुकों की टोली मेघों से पानी माँगती फिरती थी।
2. लेखक की समझ में यह बात नहीं आती कि चारों ओर पानी की इतनी कमी है और लोगों ने बड़ी कठिनाई से पानी इकट्ठा करके रखा हुआ है फिर वे उस पानी को इन लड़कों पर फेंककर क्यों बर्बाद करते हैं? उन्हें उस पानी का उपयोग अपने लिए करना चाहिए।
3. लेखक इस अधविश्वास से दु:खी है कि लोग इन लड़कों को इंद्र की सेना मानकर पानी की बर्बादी कर रहे हैं। यदि इंद्र महाराज से ये लड़के (इंद्र की सेना) पानी दिलवा सकते तो ये खुद उसी से पानी क्यों नहीं माँग लेते। ये मुहल्ले भर में पानी माँगते क्यों घूमते फिरते हैं।
4. अंधविश्वासों का नतीजा हमें यह भुगतना पड़ा कि हम अंग्रेजों से पिछड़ गए और हम उनके गुलाम बनकर रह गए।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-   
मैं असल में था तो इन्हीं मेढक-मंडली वालों की उमर का, पर कुछ तो बचपन के आर्यसमाजी संस्कार थे और एक कुमार-सुधार सभा कायम हुई थी उसका उपमंत्री बना दिया गया था- सो समाज-सुधार का जोश कुछ ज्यादा ही था। अंधविश्वासों के खिलाफ तो तरकस से तीर रखकर घूमता रहता था। मगर मुश्किल यह थी कि मुझे अपने बचपन में जिससे सबसे ज्यादा प्यार मिला वे थीं जीजी। यूँ मेरी रिश्ते में कोई नहीं थीं। आयु में मेरी माँ से भी बड़ी थीं, पर अपने लड़के-बहू सबको छोड़कर उनके प्राण मुझी में बसते थे और वे थीं उन तमाम रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों की खान जिन्हे कुमार-सुधार सभा का वह उपमंत्री अंधविश्वास कहता था और उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकना चाहता था पर मुश्किल यह थी कि उनका कोई पूजा-विधान, कोई त्योहार अनुष्ठान मेरे बिना पूरा नहीं होता था। दीवाली है तो गोबर और कौड़ियों से गोवर्धन और सतिया बनाने में लगा हूँ, जन्माष्टमी है तो रोज आठ दिन की झाँकी तक की सजाने और पंजीरी बाँटने में लगा हूँ, हर-छठ है तो छोटी रंगीन कुल्हियों में भूजा भर रहा हूँ। किसी में भुना चना, किसी में भुनी मटर, किसी में भुने अरवा चावल, किसी में भुना गेहूँ। जीजी यह सब मेरे हाथों से करातीं, ताकि उनका पुण्य मुझे मिले। केवल मुझे।
1. लेखक बचपन में कैसा था?
2. बचपन में वह क्या काम करता घूमता था?
3. जीजी कौन थी? उसके साथ लेखक के कैसे सबंध थे?
4. जीजी के लिए लेखक को क्या-क्या काम करने पड़ते थे?


1. लेखक बचपन में आर्यसमाजी संस्कारों वाला था। उसे कुमार सभा का उपमंत्री बना दिया गया था।
2. लेखक अंधविश्वासो के खिलाफ प्रचार करता हुआ घूमता था। उस समय उस पर समाज-सुधार का जोश ज्यादा चढ़ा रहता था।
3. वैसे तो लेखक का जीजी से कोई रिश्ता नहीं था, पर वह लेखक को बहुत प्यार करती थी। जीजी के प्राण उसी मे बसते थे। वह उम्र में लेखक की माँ से भी बड़ी थी। उन दोनों के बीच स्नेह का संबंध था।
4. लेखक जिन कामों को अंधविश्वास कहता फिरता था, जीजी की खुशी के लिए उसे वे ही काम करने पड़ते थे। उसे सारे पूजा-पाठ, अनुष्ठान पूरे करने पड़ते थे। वह दीवाली पर कौड़ियों से गोवर्धन और सतिया बनाता था, जन्माष्टमी पर झाँकी सजाता था और पंजीरी बाँटता था। हर-छठ पर कुलियों में भूजा भरता था। वैसे जीजी इन कामों को लेखक से इसलिए करवाती थी ताकि पुण्य का भागी वही बने।

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धर्मवीर भारती का साहित्यिक परिचय दीजिए।


जीवन-परिचय: ‘धर्मयुग’ के संपादक के रूप में यश अर्जित करने वाले धर्मवीर भारती का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नगर में सन् 1926 में हुआ था। शैशव में ही पिता का देहांत हो जाने के कारण इन्हें अर्थाभाव का संकट झेलना पड़ा। इनका जीवन संघर्षमय रहा। मामाश्री अभयकृष्ण जौहरी का आश्रय और संरक्षण मिलने से ये अपनी शिक्षा पूर्ण कर पाए। ये प्रारभ से ही स्वावलंबी प्रवृत्ति के थे अत: पद्मकांत महावीर के पत्र ‘अभुदय’ तथा इलाचंद्र जोशी के पत्र ‘संगम’ में कार्य किया। बाद में इन्हें प्रयाग विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग में प्राध्यापक का पद मिल गया 11960 ई. में विश्वविद्यालय छोड्कर मुंबई चले गए और वहाँ ‘धर्मयुग’ का संपादन करने लगे।

‘दूसरा सप्तक’ में विशिष्ट कवि के रूप में स्थान पाने के कारण इनकी गिनती प्रयोगवादी कवियों में की जाने लगी किन्तु मूलत: वे गीतकार ही हैं। रोमानी कविता के रूप मे वे प्रेम और सौंदर्य के गायक कवि हैं। कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, पत्रकार तथा आलोचक के रूप में इन्होंने हिन्दी-साहित्य को समृद्ध किया है। अपनी साहित्य सेवाओं के लिए इन्हें अनेक बार सम्मानित किया गया है। कॉमनवेल्थ रिलेशंस तथा जर्मन सरकार के आमंत्रण पर इन्होंने इंग्लैंड, यूरोप और जर्मनी की; भारतीय दूतावास के अतिथि के रूप में इंडोनेशिया और थाईलैंड की तथा मुक्तिवाहिनी के सदस्य के रूप में बांग्लादेश की यात्राएँ कीं। इनको भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ के उपाधि से अलंकृत किया। सन् 1997 ई. में इनका देहांत हो गया।

इन रचनाओं के अतिरिक्त उन्होंने ऑस्कर वाइल्ड की कहानियों का हिन्दी में अनुवाद किया। ‘देशांतर’ तथा ‘युद्ध-यात्रा’ इनकी अनूदित कृतियाँ हैं।

साहित्यिक परिचय (काव्यगत विशेषताएँ): धर्मवीर भारती की काव्य की भावभूमि अत्यन्त व्यापक है। इनका प्रारंभिक काव्य रोमानी भाव बोध का काव्य है। प्रेम, सौंदर्य और संयोग-वियोग के श्रृंगारिक चित्र इन रचनाओ का वैशिष्टय है। भारती जी ने नारी के मांसल सौंदर्य के मादक चित्र भी उकेरे हैं-

इन फीरोजी होठों पर बरबाद मेरी जिदंगी,

गुलाबी पाँखुरी पर एक हल्की सुरमई आभा।

कि ज्यों करवट बदल लेती, कभी बरसात की दोपहर।

छायावाद की अनेक विशेषताएं उनके काव्य में मिलती हैं। छायावादी कवियों जैसी वैयक्तिकता भी उनके काव्य में मिलती है पर इतना अवश्य है कि इनकी वैयक्तिकता बौद्धिकता को साथ लेकर चली है। ‘नया रस’ कविता में वैयक्तिकता और बौद्धिकता सहचर रूप में मिलते हैं।

गुनाहों का देवता उपन्यास से लोकप्रिय धर्मवीर भारती का आजादी के बाद के साहित्यकारों में विशिष्ट स्थान है। उनकी कविताएँ कहानियाँ, उपन्यास, निबंध, गीतिनाट्य और रिपोर्ताज हिन्दी साहित्य की उपलब्धियाँ हैं। भारती जी के लेखन की एक खासियत यह भी है कि हर उम्र और हर वर्ग के पाठकों के बीच उनकी अलग-अलग रचनाएँ लोकप्रिय हैं। वे मूल रूप से व्यक्ति स्वातंत्र्य मानवीय संकट एवं रोमानी चेतना के रचनाकार हैं। तमाम सामाजिकता एवं उत्तरदायित्वों के बावजूद उनकी रचनाओं में व्यक्ति की स्वतंत्रता ही सर्वोपरि है। रोमानियत उनकी रचनाओं में संगीत में लय की तरह मौजूद है। उनका सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास गुनाहों का देवता एक सरस और भावप्रवण प्रेम कथा है। दूसरे लोकप्रिय उपन्यास सूरज का सातवाँ घोड़ा पर हिन्दी फिल्म भी बन चुकी है। इस उपन्यास में प्रेम को केन्द्र में रखकर निम्न मध्यवर्ग की हताशा, आर्थिक संघर्ष, नैतिक विचलन और अनाचार को चित्रित किया गया है। स्वतत्रता के बाद गिरते हुए जीवन मूल्य, अनास्था, मोहभंग, विश्वयुद्धों से उपजा हुआ डर और अमानवीयता की अभिव्यक्ति अंधा युग में हुई है। अंधा युग गीति साहित्य के श्रेष्ठ गीति नाट्यों में है। ‘मानव मूल्य और साहित्य’ पुस्तक समाज-सापेक्षिता को साहित्य के अनिवार्य मूल्य के रूप में विवेचित करती है।

इन विधाओं के अलावा भारती जी ने निबंध और रिपोर्ताज भी लिखे। उनके गद्य लेखन में सहजता और आत्मीयता है। बड़ी-से-बड़ी बात वे बातचीत की शैली में कहते हैं।

 

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