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तिरती है समीर-सागर पर

अस्थिर सुख पर दुःख की छाया

जग के दग्ध हृदय पर

निर्दय विप्लव की प्लावित माया।


हे विप्लव के बादल! जन-मन की आकांक्षाओं से भरी तेरी (बादल की) नाव समीर रूपी सागर पर तैर रही है। संसार के सुख अस्थिर हैं। इन अस्थिर सुखों पर दु:ख की छाया दिखाई दे रही है। संसार के लोगों का हृदय दु:खों से दग्ध (जला हुआ) है। इस दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव अर्थात् क्रांति की माया (जादू) फैली हुई है अर्थात् बादलों का आगमन ग्रीष्मावकाश से दग्ध पृथ्वी को आनंद देता है वैसे ही क्रांति का आगमन शोषित वर्ग को सुखी बनाता है।

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अशनि-पाठ मे शापित उन्नत शत-शत वीर पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है?

अशनि-पात अर्थात् बिजली के गिरने से ऊँचे-ऊँचे पहाड़ तक घायल होकर गिर पड़ते हैं।

इस पंक्ति में पूँजीपतियों के पतन की ओर संकेत किया गया है। क्रांति के आने पर बड़े-बड़े दंभी पूँजीपतियों का भी बुरा हाल हो जाता है। शोषक वर्ग (पूँजीपति) भी धराशायी हो जाते हैं। उनके उच्च होने का गर्व चूर-चूर हो जाता है। इस पंक्ति में ‘अशनि-पात’ क्रांति की ओर संकेत कर रहा है।

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विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते पंक्ति विप्लव-रव से् क्या तात्पर्य है? छोटे ही हैं शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है?


‘विप्लव-रव’ से तात्पर्य क्रांति के स्वर से है। जब क्रांति आती है तो उसका सबसे अधिक लाभ छोटे लोगों (किसान-मजदूरों-शोषित वर्ग) को ही मिलता है। शोषक वर्ग तो ‘विप्लव-रव’ अर्थात् क्रांति आने की संभावना से ही बुरी तरह घबरा जाता है। शोषित वर्ग जब क्रांति आने की आवाज (आहट) सुनता है तो उसके चेहरे पर प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती है। क्रांति में यह वर्ग शोभा प्राप्त करता है।

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बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है?


बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले निम्नलिखित परिवर्तनों को यह कविता रेखांकित करती है-

- बादलों की गर्जना होने लगती है।

- पृथ्वी में से पौधों का अंकुरण होने लगता है।

- मूसलाधार वर्षा होने लगती है।

- बिजली चमकती है तथा गिर भी जाती है।

- छोटे-छोटे पौधे हवा चलने के कारण हाथ हिलाते जान पड़ते हैं।

- कमल का फूल खिलता है तथा उससे जल की बूँदें टपकती हैं।

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अस्थिर सुख पर दुःख की छाया पंक्ति में दुःख की छाया किसे कहा गया है और क्यों?

कवि ने सांसारिक सुखों पर दुःख की छाया तैरती बताया गया है। यह दुःख की छाया शोषण की काली छाया है। पूँजीपतियों द्वारा किसान-मजदूरों का शोषण किया जाता है। उनके जीवन में सुख तो क्षणिक हैं, पर उन पर हमेशा दुःख की छाया मँडराती रहती है। कवि सुखों की अस्थिरता और दुःख के यथार्थ को प्रकट करना चाहता है।

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