निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
वह चलने लगी तो वे भी खड़े हो गए और कहने लगे, “जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून को यह नमक देते वक्त मेरी तरफ से कहिएगा कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा, तो बाकी सब रफ्ता-रफ्ता ठीक हो जाएगा।”
साफिया कस्टम के जंगले से निकलकर दूसरे प्लेटफार्म पर आ गई और वे वहीं खड़े रहे।
प्लेटफार्म पर उसके बहुत-से दोस्त, भाई रिश्तेदार थे, हसरत भरी नजरों, बहते हुए आँसुओं, ठंडी साँसों और भिचे हुए होठों को बीच में से काटती हुई रेल सरहद की तरफ बड़ी। अटारी में पाकिस्तान पुलिस उतरी, हिंदुस्तानी पुलिस सवार हुई। कुछ समझ में नहीं आता था कि कहाँ से लाहौर खत्म हुआ और किस जगह से अमृतसर शुरू हो गया। एक जमीन थी, एक जबान थी, एक-सी सूरतें और लिबास, एक-सा लबोलहजा और अंदाज थे, गालियाँ भी एक ही-सी थीं जिनसे दोनों बड़े प्यार से एक-दूसरे को नवाज रहे थे। बस मुश्किल सिर्फ इतनी थी कि भरी हुई बंदूकें दोनों के हाथों में थीं।
1. किसके चलने पर कौन खड़े हो गए? उन्होने क्या कहा?
2. प्लेटफार्म पर क्या दृश्य था?
3. लेखिका की समझ में क्या बात नहीं आती थी?
4.  इस गद्याशं में क्या बात उभर कर आती है?




1. साफिया के चलने पर अटारी के कस्टम ऑफिसर खड़े हो गए। उन्होंने नमक की पुड़िया को लौटाते हुए कहा कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून (महिला) को यह नमक देते हुए मेरी तरफ से यह कहना कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा। बाकी सब धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा।

2. प्लेटफार्म पर साफिया के बहुत से दोस्त, भाई और रिश्तेदार जमा थे। वे साफिया को हरसत भरी नजरों से देख रहे थे, उनकी आँखों में आँसू थे तथा ठंडी साँसें ले-छोड़ रहे थे। रेल सरहद की ओर बढ़ रही थी। अटारी में पुलिस की अदला-बदला हुई।

3. लेखिका की समझ में यह बात नहीं आती लाहौर कब खत्म हो जाता है और कब अमृतसर शुरू हो गया। एक जमीन, एक भाषा, एक-सी सूरतें, एक-सी वेशभूषा सभी कुछ समान था फिर देश कैसे बदल जाता है? लोगों के बोलने का अंदाज भी एक समान था।

4. इस गद्यांश से यह बात उभर कर आती है कि राजनीति ने लोगो को सीमाओं मे बाँधकर बाँट दिया है जबकि उनकी सभी बातें समान हैं। यह बँटवारा कृत्रिम है। लोगों के दिलों को नहीं बाँटा जा सकता।

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उन सिख बीबी को देखकर साफिया हैरान रह गई थी, किस कदर वह उसकी माँ से मिलती थी। वही भारी भरकम जिस्म, छोटी-छोटी चमकदार आँखें, जिनमें नेकी, मुहब्बत और रहमदिली की रोशनी जगमगाया करती थी। चेहरा जैसे कोई खुली हुई किताब। वैसा ही सफेद बारीक मलमल का दुपट्टा जैसा उसकी अम्मा मुहर्रम में ओढ़ा करती थी।

जब साफिया ने कई बार उनकी तरफ मुहब्बत से देखा तो उन्होंने भी उसके बारे में घर की बहू से पूछा। उन्हें बताया गया कि ये मुसलमान हैं। कल ही सुबह लाहोर जा रही हैं अपने भाइयों से मिलने, जिन्हें इन्होंने कई साल से नहीं देखा। लाहौर का नाम सुनकर वे उठकर साफिया के पास आ बैठीं और उसे बताने लगीं कि उनका लाहौर कितना प्यारा शहर है। वहाँ के लोग कैसे खूबसूरत होते हैं, उम्दा खाने और नफीस कपड़ों के शौकीन, सैर-सपाटे के रसिया, जिंदादिली की तसवीर।

पाठ तथा लेखिका का नाम बताइए।

सिख बीबी की किन विशेषताओं को देखकर साफिया हैरान रह गई?

घर की बहू ने सिख बीबी को क्या बताया?

घर की बहू ने सिख बीबी को क्या बताया?


पाठ का नाम - नमक।

लेखिका का नाम - रजिया सज्जाद जहीर।

साफिया को सिख बीबी में अपनी माँ का रूप दिखाई दिया था। वह भारी भरकम शरीर वाली थी। उक्की आँखे छोटी-छोटी तथा चमकदार थीं। उसने सफेद बारीक मलमल का दुपट्टा ओढ़ रखा था।

घर की बहू ने सिख बीबी को बताया कि साफिया मुसलमान है। यह कल ही अपने भाइयों से मिलने लाहौर जा रही है।

जब सिख बीबी को पता चला कि साफिया लाहौर जा रही है तो वह उसके पास जा बैठी तथा उसे लाहौर के बारे में काफी बताया। यह भी बताया कि वह बहुत प्यारा शहर है। वहाँ के लोग खूबसूरत; बढ़िया खाने, गहने-कपड़ों के बहुत शौकीन हैं। वे दरियादिल होते हैं।

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रजिया सज्जाद जहीर के जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।


जीवन-परिचय: रजिया सज्जाद जहीर का जन्म 15 फरवरी, सन् 1917 को अजमेर (राजस्थान) में हुआ था। रजिया सज्जाद जहीर मूलत: उर्दू की कहानी लेखिका हैं। उन्होंने बी. ए. तक की शिक्षा घर पर रहकर ही प्राप्त की। विवाह के बाद उन्होंने इलाहाबाद से उर्दू में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1947 में वे अजमेर से लखनऊ आईं और वहाँ करामत हुसैन गर्ल्स कॉलेज में पढाने लगीं। सन् 1965 में उनकी नियुक्ति सोवियत सूचना विभाग में हुई। उनका निधन 18 दिसबर, 1979 को हुआ।

आधुनिक उर्दू कथा-साहित्य में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने कहानी और उपन्यास दोनों लिखे हैं। उन्होंने उर्दू में बाल-साहित्य की रचना भी की है। मौलिक सर्जन के साथ-साथ उन्होंने कई अन्य भाषाओं से उर्दू में कुछ पुस्तकों के अनुवाद भी किए हैं। रजिया जी की भाषा सहज, सरल व मुहावरेदार है। उनकी कुछ कहानियाँ देवनागरी में भी लिप्यंतरित हो चुकी हैं।

रजिया सज्जाद जहीर की कहानियो में सामाजिक सद्भाव, धार्मिक सहिष्णुता और आधुनिक संदर्भो में बदलते हुए पारिवारिक मूल्यों को उभारने का सफल प्रयास मिलता है। सामाजिक यथार्थ और मानवीय गुणों का सहज सामंजस्य उनकी कहानियों की विशेषता है। उनकी कहानियों की मात्रा सहज सरल और मुहावरेदार है।

प्रमुख रचनाएँ: जर्द गुलाब (उर्दू कहानी संग्रह)।

सम्मान: सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार, उर्दू अकादमी, उत्तर प्रदेश, अखिल भारतीय लेखिका संघ अवार्ड।

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जब साफिया ने कई बार उनकी तरफ मुहब्बत से देखा तो उन्होंने भी उसके बारे में घर की बहू से पूछा। उन्हें बताया गया कि वे मुसलमान हैं। कल ही सुबह लाहौर जा रही हैं अपने भाइयों से मिलने, जिन्हें इन्होंने कई साल से नहीं देखा। लाहौर का नाम सुनकर वे उठकर साफिया के पास आ बैठीं और उसे बताने लगीं कि उनका लाहौर कितना प्यारा है। वहाँ के लोग कैसे खूबसूरत होते हैं, उम्दा खाने और नफीस कपड़ों के शौकीन, सैर-सपाटे के रसिया, जिंदादिली की तस्वीर। कीर्तन होता रहा। वे आहिस्ता-आहिस्ता बातें करती रही। साफिया ने दो-एक बार बीच में पूछा भी, 'माता जी, आपको तो यहाँ आए बहुत साल हो गए होंगे।' 'हों बेटी! जब हिंदुस्तान बना था तभी आए थे। वैसे तो अब यहाँ भी कोठी बन गई है। बिजनेस है, सब ठीक ही है, पर लाहौर याद आता है। हमारा वतन तो जी लाहौर ही है।'

यह साफिया कौन है? किसने, किससे, किसके बारे में पूछा?

उसने साफिया के बारे में क्या बताया?

लाहौर का नाम सुनकर किस पर, क्या प्रभाव पड़ा?


यह साफिया मुसलमान है। जब उसने सिख बीबी की ओर मुहब्बत से देखा तो उन्होंने अपने घर की बहू से उसके बार में जानकारी माँगी।

बहू ने बीबी को बताया कि ये मुसलमान हैं और कल ही लाहौर जा रही हैं। वहाँ इनके भाई रहते हैं। उन्हें इन्होंने कई साल से नहीं देखा है। उन्हीं से मिलने जा रही हैं।

लाहौर का नाम सुनते ही बीबी उठकर साफिया के पास जाकर बैठ गई और लाहौर का गुणगान करने लगीं। उनके अनुसार लाहौर और वहाँ के लोग बहुत खूबसूरत हैं। वे बढ़िया खाने और सुरुचिपूर्ण कपड़ों के शौकीन होते हैं। वहाँ के लोग रसिक एवं जिंदादिल हैं।

बीबी ने अपने बारे में यह बताया कि उसे लाहौर से यहाँ आए बहुत साल बीत गए अर्थात् वह बँटवारे के समय ही यहाँ आ गई थी, अब यहाँ उनकी कोठी भी बन गई है, बिजनेस भी ठीक-ठाक है पर लाहौर अभी भी बहुत याद आता है। उसका वतन तो लाहौर ही है।

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पंद्रह दिन यों गुजरे कि पता ही नहीं चला। जिमखाना की शामें, दोस्तों की मुहब्बत, भाइयों की खातिरदारियाँ-उनका बस न चलता था कि बिछुड़ी हुई परदेसी बहिन के लिए क्या कुछ न कर दें! दोस्तों, अजीजों की यह हालत है कि कोई कुछ लिए आ रहा है, कोई कुछ। कहाँ रखें, कैसे पैक करें, क्यों कर ले जाएँ-एक समस्या थी। सबसे बड़ी समस्या थी बादामी कागज की एक पुड़िया की जिसमें कोई सेर भर लाहौरी नमक था।

साफिया का भाई एक बहुत बड़ा पुलिस अफसर था। उसने सोचा कि वह ठीक राय दे सकेगा।

चुपके से पूछने लगी, “क्यों भैया, नमक ले जा सकते हैं?”

वह हैरान होकर बोला, “नमक? तो नहीं ले जा सकते, गैरकानूनी है और... और नमक का आप क्या करेंगी? आप लोगों के हिस्से में तो हमसे बहुत ज्यादा नमक आया है।”

वह झुँझला गई, “मैं हिस्से-बखरे की बात नहीं कर रही हूँ, आया होगा। मुझे तो लाहौर का नमक चाहिए, मेरी माँ ने यही मँगवाया है।”

साफिया के पंद्रह दिन कैसे गुजरे?

साफिया के सामने क्या समस्या आई?

साफिया के भाई ने उसे क्या जवाब दिया?

साफिया के भाई ने उसे क्या जवाब दिया?


साफिया के पंन्द्रह दिन बहुत मजे में गुजरे। उसे पता ही न चला कि पंद्रह दिन कब बीत गए। लाहौर में उसके भाइयों ने बहुत खातिरदारी की। वह वहाँ दोस्तों की मुहब्बत में खो गई।

साफिया के सामने यह समस्या आई कि वह बादामी कागज में रखे सेर भर नमक को किस प्रकार भारत ले जाए। इसे सिख बीबी ने मँगवाया था अत: ले जाना जरूरी था।

साफिया के भाई ने जो पाकिस्तान की पुलिस मे अफसर था बताया कि सरहद पार नमक ले जाना गैर कानूनी है। साथ में यह भी कहा कि भारत में पाकिस्तान से ज्यादा नमक है।

भाई के जवाब पर साफिया ने कहा कि वह हिस्से की बात नहीं कर रही है। उसे तो लाहौर का नमक चाहिए क्योंकि इसे उसकी माँ ने मँगवाया है।

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