निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
फिर जब कीचड़ ज्यादा सूखकर ज़मीन ठोस हो जाए, तब गाय, बैल, पाड़े, भैंस, भेड़, बकरे इत्यादि के पदचिन्ह उस पर अंकित होते हैं उनकी शोभा और ही है। और फिर जब दो मदमस्त पाड़े अपने सींगों से कीचड़ को रौंदकर आपस में लड़ते हैं तब नदी किनारे अंकित पदचिन्ह ओर सींगों के चिन्हों से मानो महिषकुल के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कर्दम लेख में लिखा हो-ऐसा भास होता है।
कीचड़ देखना हो तो गंगा के किनारे या सिंधु के किनारे और इतने से तृप्ति न हो तो सीधे खंभात पहुँचना चाहिए। वहाँ मही नदी के मुख से आगे जहाँ तक नज़र पहुँचे वहाँ तक सर्वत्र सनातन कीचड़ ही देखने को मिलेगा। इस कीचड़ में हाथी डूब जाएँगे ऐसा कहना, न शोभा दे ऐसी अल्पोक्ति करने जैसा है। पहाड़ के पहाड़ उसमें लुप्त हो जाएँगे ऐसा कहना चाहिए।
प्रशन:
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो?
(ख) कीचड़ के सूखने पर उसकी शोभा कैसे प्रकट होती है?
(ग) कीचड़ की सौदंर्य के दर्शन कहाँ-कहाँ होते है?
(घ) सबसे अधिक कीचड़ कहाँ होती है? उसकी गहराई का वर्णन कीजिए।

(क) पाठ-कीचड़ का काव्य, लेखक-काका कालेलकर।
(ख) जब कीचड़ सूख जाती है तो उस पर गाय, बैल, पाड़े, भैंस, भेड़, बकरे आदि खूब चलते-फिरते तथा उठा-पटक करते हैं। भैसों के पाड़े तो सींग भिड़ाकर युद्ध करते हैं। तब सूखी कीचड़ पर जो निशान पड़ जाते है वे बहुत शोभाशाली प्रतीत होते है?
(ग) कीचड़ के सौन्दर्य का दर्शन निम्नलिखित स्थलों पर किए जा सकते हैं-
1. गंगा का किनारा 2. सिंधु का किनारा 3. खंभात में मही नदी के मुख पर
(घ) खंभात में मही नदी के मुख पर अथाह कीचड़ है। उस कीचड़ की गहराई इतनी अधिक है कि बड़े-बड़े हाथी ही नहीं, पूरे के पूरे पहाड़ उसमे समा सकते हैं।

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निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
हमारा अन्न कीचड़ में से ही पैदा होता है इसका जाग्रत भान यदि हर एक मनुष्य को होता तो वह कभी कीचड़ का तिरस्कार न करता। एक अजीब बात तो देखिए। पैक शब्द घृणास्पद लगता है, जबकि पंकज शब्द सुनते ही कवि लोग डोलने और गाने लगते हैं। मन बिलकुल मलिन माना चाता है किंतु कमल शब्द सुनते ही चित्त में प्रसन्नता और आहृदकत्व फूट पड़ते हैं। कवियों की ऐसी युक्तिशून्य वृत्ति उनके सामने हम रखें तो वे कहेंगे कि “आप वासुदेव की पूजा करते हैं इसलिए, वसुदेव को तो नहीं पूजते हीरे का भारी मूल्य देते हैं किंतु कोयले या पत्थर का नहीं देते और मोती को कंठ में बाँधकर फिरते हैं किन्तु उसकी मातुश्री को गले में नहीं बाँधते!” कम-से-कम इस विषय पर कवियों के साथ तो चर्चा न करना ही उत्तम! 
प्रशन:
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
(ख) किस अज्ञान के कारण मनुष्य कीचड़ का तिरस्कार करता है?
(ग) कवि की किस वृत्ति को मुक्ति शुन्य कहकर अपमानित किया गया है?
(घ) कवि कीचड़ के विरोध में क्या-क्यो तर्क देते है?


(क) पाठ-कीचड़ का काव्य, लेखक-काका कालेलकर।
(ख) अन्न कीचड़ से पैदा होता है। इस बात को न जानने के कारण मनुष्य कीचड़ का तिरस्कार करता है।
(ग) कवि मनमाने ढंग से कमल को अति सुन्दर कहकर प्रसन्नता प्रकट करते है और कीचड़ को घृणित कहकर अपमानित करते है। कवि की दृष्टि में उनकी यह भेद भावना युक्ति शून्य है अर्थात् तर्कहीन है और समझ से परे है।
(घ) कविजन कमल की प्रशंसा और मल की निन्दा करने के पीछे निम्नलिखित तर्क देते है:
- हम वासुदेव कृष्ण की पूजा करते है किन्तु उनके पिता वसुदेव की पूजा नहीं करते।
- हम हीरे को मूल्यवान समझते है किन्तु उनके स्रोत कोयले, पत्थर को मूल्यवान नहीं मानते।
- हम मोती को गले में धारण करते है किन्तु उसे जन्म देने वाली सीपी को गले में धारण नहीं करते।

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निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
हम आकाश का वर्णन करते हैं, पृथ्वी का वर्णन करते हैं, जलाशयों का वर्णन करते हैं। पर कीचड़ का वर्णन कभी किसी ने किया है? कीचड़ में पैर डालना कोई पसंद नहीं करता, कीचड़ से शरीर गंदा होता है, कपड़े मैले हो जाते हैं। अपने शरीर पर कीचड़ उड़े यह किसी को भी अच्छा नहीं लगता और इसीलिए कीचड़ के लिए किसी को सहानुभूति नहीं होती। यह सब यथार्थ है। किंतु तटस्थता से सोचें तो हम देखेंगे कि कीचड़ में कुछ कम सौन्दर्य नहीं है। पहले तो यह कि कीचड़ का रंग बहुत सुंदर है। पुस्तकों के गत्तों पर, घरों की दीवालों पर अथवा शरीर पर के कीमती कपड़ों के लिए हम सब कीचड़ के जैसे रंग पसंद करते हैं। कलाभिज्ञ लोगों को भट्‌ठी में पकाए हुए मिट्‌टी के बरतनों के लिए यही रंग बहुत पसंद है। फोटो लेते समय भी यदि उसमें कीचड़ का, एकाध ठीकरे का रंग आ जाए तो उसे वार्मटोन कहकर विज्ञ लोग खुश-खुश हो जाते हैं। ‘पर लो’ कीचड़ का नाम लेते ही सब बिगड़ जाता है।
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो?
(ख) लोग कीचड़ की उपेक्षा क्यों कुरते है?
(ग) प्रस्तुत गद्यांश में प्रकृति के किन रूपों का वर्णन किया जाता है?
(घ) हम अनजाने में कीचड़ के रंग कहाँ-कहाँ प्रयोग करते है?


(क) पाठ-कीचड़ का काव्य, लेखक-काका कालेलकर।
(ख) लोग कीचड़ को गंदा मानते है। उसको छूने से कपड़े मैले हो जाते है। कोई न तो अपने कपड़ों पर कीचड़ के छीटें देखना चाहता है, न ही उसमें पैर डालना पसन्द करता है। कारण एक ही है हम उसे गंदा समझते है।
(ग) इसमें प्रकृति के सुन्दर रूपों को वर्णन किया गया है। वर्णन करने वाले अर्थात् वर्णनकर्ता आकाश की नीलिका का पृथ्वी की हरियाली का या सरोवरों की स्वच्छता का वर्णन करते है।
(घ) हम आनजाने में कीचड़ के रंगों का प्रयोग निम्न स्थलों पर करते है।
(i) पुस्तकों के गत्तों पर (ii) घरों की दीवारों पर (iii) कीमती कपड़ों पर

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लेखक ने कीचड़ में सौन्दर्य के दर्शन कहाँ-कहाँ किए?

लेखक ने कीचड़ में सौन्दर्य का दर्शन अनेक स्थलों पर किया है। उन्हें सूखी हुई कीचड़ ऐसी प्रतीत हुई मानो धरती पर खोपरे सुखाने के लिए डाले गए हो। उन्हें सूखी कीचड़ के ऊपर चलते हुए बगुले तथा अन्य पक्षी भी सुंदर प्रतीत हुए। अधिक सूखने पर उन्हें गायों, भैंसों, बैलों, पाडों, भेड़ों और बकरियों का चलना सुंदर प्रतीत हुआ। दो पाडों के युद्ध के कारण मची हुई हलचल को लेखक/कवि कीचड़ का सुन्दरतम दृश्य मानते हैं।
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कीचड़ के तिरस्कार का मूल कारण क्या है?

कीचड़ देखने में सुंदर नहीं होता। यह हमारे शरीर और कपड़ों को मैला कर देता है। मैल से सभी बचते हैं, इसलिए कीचड़ से सभी बचते हैं।
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