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श्री जयशंकर प्रसाद ने ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता की रचना क्यों की थी?


मुंशी प्रेमचंद ‘हंस’ नामक पत्रिका चलाया करते थे। वे उसके संपादक थे। सन् 1932 में उन्होंने पत्रिका का आत्मकथा विशेषांक निकालने का निर्णय किया था। प्रसाद जी के मित्रों ने आग्रह किया कि वे भी आत्मकथा लिखें पर प्रसाद जी को ऐसा करना उचित प्रतीत नहीं हुआ। वे विनम्र थे और उन्हें ऐसा लगता था कि उन्होंने ऐसा कुछ विशेष नहीं किया था जिससे लोगों की वाहवाही उन्हें मिलती। उनकी आत्मकथा न लिखने की इच्छा के-कारण ‘आत्मकथ्य’ की रचना हुई थी जिसे ‘हंस’ पत्रिका के आत्मकथा विशेषांक में छापा गया था।
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आप अपना आत्मकथ्य पद्‌य या गद्‌य में लिखिए।

 निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज धनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

 


निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।

 


निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
अलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?


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