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द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोघी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है – जैसे ‘यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वेपूजनीय पुरूषों का मुकाबला करतीं।’ आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए?


स्त्री शिक्षा से सम्बन्धित कुछ व्यंग्य जो द्विवेदी जी द्वारा दिए गए हैं –
(1) स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट(जहर पीने जैसा ) और पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट!(अमृत पीने जैसा) ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतो के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़(अशिक्षित) रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।
(2) स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ाने ही का परिणाम है तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा का ही परिणाम समझना चाहिए।
(3) “आर्य पुत्र, शाबाश! बड़ा अच्छा काम किया जो मेरे साथ गांधर्व-विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति हैं!”
(4) अत्रि की पत्नी, पत्नी-धर्म पर व्याख्यान देते समय घंटो पांडित्य प्रकट करे, गार्गी बड़े-बड़े ब्रह्मवादियों को हरा दे, मंडन मिश्र की सहधर्मचारिणी शंकराचार्य के छक्के छुड़ा दे !गज़ब! इससे अधिक भयंकर बात और क्या हो सकेगी!
(5) जिन पंडितों ने गाथा-सप्तशती, सेतुबंध-महाकाव्य और कुमारपालचरित आदि ग्रंथ प्राकृत में बनाए हैं, वे यदि अपढ़ और गँवार थे तो हिंदी के प्रसिद्ध से भी प्रसिद्ध अख़बार का संपादक को इस ज़माने में अपढ़ और गँवार कहा जा सकता है; क्योंकि वह अपने ज़माने की प्रचलित भाषा में अख़बार लिखता है।

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कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया?


'स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं’ – कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है, अपने शब्दों में लिखिए?


परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों – तर्क सहित उत्तर दीजिए?


 पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है – पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए?

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