1. पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलने को उनके अनपढ़ होने का सुबूत नहीं माना जा सकता।
2. उस समय बहुत कम लोग ही संस्कृत बोलते थे, अतः संस्कृत न बोल पाने को अनपढ़ नहीं कहा जा सकता।
3. प्राकृत उस समय की प्रचलित भाषा थी। बौध्दों तथा जैनियों के हजारों ग्रन्थ प्राकृत में ही लिखे गए हैं।
4. उनकी रचना प्राकृत में हुई, इसका एकमात्र कारण यही हैं। कि उस समय प्राकृत सर्वसाधारण की भाषा थी।
5. अतः प्राकृत बोलना और लिखना, अनपढ़ और अशिक्षित होने का चिन्ह नहीं माना जा सकता।
परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों – तर्क सहित उत्तर दीजिए?
'स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं’ – कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है, अपने शब्दों में लिखिए?
कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया?