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इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए।


फादर कामिल बुल्के एक ऐसा नाम है जो विदेशी होते हुए भी भारतीय है। उन्होंने अपने जीवन के 73 वर्षों में से 47 वर्ष भारत को दिए। उन 47 वर्षों में उन्होंने भारत के प्रति, हिंदी के प्रति और यहां के साहित्य के प्रति विशेष निष्ठा दिखाई है।
उनका व्यक्तित्व दूसरों को तपती धूप में शीतलता प्रदान करने वाला था। उन्होंने सदैव सबके लिए एक बड़े भाई की भूमिका निभाई है। उनकी उपस्थिति में सभी कार्य बड़ी शांति और सरलता से संपन्न होते थे। उनका व्यक्तित्व संयम धारण किए हुए था। किसी ने भी उन्हें कभी क्रोध में नहीं देखा था। वे सबके साथ प्यार, ममता से मिलते थे। जिससे एक बार मिलते थे उससे रिश्ता बना लेते थे फिर वे संबंध कभी नहीं तोड़ते थे।
फादर अपने से संबंधित सभी लोगों के घर, परिवार और उनके दु:ख-तकलीफों की जानकारी रखते थे। दु:ख के समय उनके मुख से निकले दो शब्द जीवन में नया जोश भर देते थे? फादर बुल्के का व्यक्तित्व वास्तव में देवदार की छाया के समान था। उनसे संबंध बनाने के बाद आपको बड़े भाई के अपनत्व, ममता, प्यार और आशीर्वाद की कभी कमी नहीं होती थी।

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लेखक ने फादर बुल्के को ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ क्यों कहा?

पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे फादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है?

फादर बुल्के भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा गया है?

फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?

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