कुमार गंधर्व ने लिखा है-चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होना आवश्यक है? क्या शास्त्रीय गायकों को भी चित्रपट संगीत से कुछ सीखना चाहिए? कक्षा में विचार-विमर्श करें।
दोनों प्रकार के संगीतकारों को एक-दूसरे से कुछ नया सीखने का भाव होना चाहिए। शास्त्रीय संगीतकार स्वयं को चित्रपट संगीत से अछूता नहीं रख सकते।
संगीत के बारे में यह भी जानें
टिप्पणी:
1. त्रिताल या तीन सताल-यहसोलह मात्राओं का ताल है। इसमें चार-चार मात्राओं के चार विभाग होते हैं।
2. राग मालकौंस-भैरवी थाट का राग है। इसमें रे और प वर्जित है। इसमें सब स्वर कोमल लगते हैं। यह गंभीर प्रकृति का लोकप्रिय राग है।
3. मध्य या दुतलय-लय तीन प्रकार की होती है:
(i) विलंबितलय (धीमी)
(ii) मध्यलय (बीच की)
(iii) द्रुतलय(तेज)
4. मध्यलय से दुगुनी और विलंबितलय से चौगुनी तेज लय दद्रुतलय कहलाती है।
5. गानपन - जो गायकी एक आम इंसान को भी भावविभोर कर दे।
6. स्वर मालिकाएँ-स्वरों की मालाएँ। स्वर मालिका में बोल नहीं होते।
7. ऊँची पट्टी-ऊँचे (तारसप्तक के) स्वरों का प्रयोग।
8. आघात (Beats)-गायन या वादन के समय मात्राओं के अनुसार ताल का प्रयोग।
9. जलदलय -द्रुत लय (तेज)।
10. लोच - स्वरों का बारीक प्रयोग।
11. रंजक - दिल को लुभाने वाला।
12. ऋतुचक्र - कुछ राग ऋतुओं के अनुसार गाये जाते हैं, जैसे वसंत में राग बसंत तथा वर्षा ऋतु में राग मल्हार।
13. ध्वनि मुष्टिका - आवाज।
14. पक्कापन - परिपक्वता (Maturity)
शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व का आधार क्या होना चाहिए? कुमार गंधर्व की इस संबंध में क्या राय है? स्वयं आप क्या सोचते हैं?
पाठ में किए गए अंतरों के अलावा संगीत शिक्षक से चित्रपट संगीत एवं शास्त्रीय संगीत का अंतर पता करें। इन अंतरों को सूचीबद्ध करें।