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भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?


भाषा में झारखंडीपन से अभिप्राय भाषा के स्थानीय स्वरूप की रक्षा करना है। यह स्वरूप यहाँ की बोली में झलकता है। यह यहाँ की मौलिकता की पहचान है। यहाँ खड़ी बोली का प्रयोग तो बनावटीपन की झलक दे जाता है।

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इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है-से क्या आशय है?

दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?


प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?


‘माटी का रंग’ प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?

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