प्रसंग-प्रस्तुत पक्तियाँ संथाली कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा रचित कविता ‘आओ मिलकर बचाएं’ से अवतरित हैं। कवयित्री आदिवासी समाज के मूल चरित्र को बचाए रखने के लिए कृतसंकल्प है।
व्याख्या-कवयित्री आदिवासी समाज में आ रही आलस्य की प्रवृत्ति पर व्यंग्य करती है। उनकी दिनचर्या में ठंडापन आता चला जा रहा है, जीवन में उत्साह का अभाव होता जा रहा है। उनके मन में हरापन अर्थात् खुशी का आना आवश्यक है। इसके साथ-साथ उनके मन में भोलापन होना चाहिए। उनके स्वभाव में अक्खड़पन के साथ-साथ जुझारूपन की भी आवश्यकता है। तभी वे अपने मूल चरित्र को बनाए रख पाएंगे। संथाली आदिवासी की पहचान उनके दिल में छिपी आग (उत्साह) धनुष की डोरी पर चढ़ा तीर और कंधे पर कुन्हाड़ी है। उन्हें इस पहचान को बनाए रखना है।
झारखंड के परिवेश में जंगल की ताजा हवा, नदियों की पवित्रता, पहाड़ों की चुप्पी, गीतों की धुन, मिट्टी का सोंधापन तथा फसलों की लहलहाहट समाई रहती है। इन सबसे मिलकर यहाँ का विशिष्ट स्वरूप निर्मित होता है।
निर्मला पुतुल के जन्म का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं एवं रचनाओं का उल्लेख कीजिए।