Advertisement

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:
और इस अविश्वास भरे दौर में
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने
आओ, मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा है, अब भी हमारे पास!


प्रसंग- प्रस्तुत पक्तियाँ संथाली कवयित्री निर्मला छल द्वारा रचित कविता ‘आओ, मिलकर बचाएँ’ से अवतरित हैं। इसमें कवयित्री वर्तमान परिस्थितियों में विश्वास के सकंट से उबरने की प्रेरणा देती है।

व्याख्या-कवयित्री कहती है कि आज के वातावरण में अविश्वास की भावना समाई हुई है। इसे विश्वास में परिवर्तित करने की आवश्यकता है। यहाँ के समाज को विश्वास और उम्मीद की जरूरत है। इनकी बहाली होनी चाहिए। उन लोगों के मन में थोड़े से सपने भी जगाने होंगे। इससे उनका जीवन सुखी बन सकेगा।

कवयित्री लोगों को आह्वान करती है कि आओ, हम सब मिलकर उस सब को बचाने का प्रयास करें जो शेष रह गया है। कवयित्री के अनुसार अभी भी स्थिति अधिक नहीं बिगड़ी है। अभी बहुत कुछ बचा हुआ है, इसे सहेजना भी काफी रहेगा। जो शेष है, उसे बचाकर भी हम अपनी संस्कृति की रक्षा करने में समर्थ हो सकेंगे।

1540 Views

Advertisement
दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:
ठंडी होती दिनचर्या में
जीवन की गर्माहट
मन का हरापन
भोलापन दिल का
अक्खड़पन, जुझारूपन भी भीतर की आग
धनुष की डोरी
तीर का नुकीलापन
कुल्हाड़ी की धार
जंगल की ताजा हवा
नदियों की निर्मलता
पहाड़ों का मौन
गीतों की धुन
मिट्टी का सोंधापन
फसलों की लहलहाहट

निर्मला पुतुल के जन्म का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं एवं रचनाओं का उल्लेख कीजिए।


दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:
अपनी बस्तियों को
नंगी होने से
शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे बचाएँ डूबने से
पूरी की पूरी बस्ती को
हड़िया में
अपने चेहरे पर
संथाल परगना की माटी का रग
भाषा में झारखंडीपन

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:
नाचने के लिए खुला आँगन
गाने के लिए गीत
हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठी-भर एकान्त
बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरी-भरी घास
बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शान्ति

First 1 Last
Advertisement