हे भूख! मत मचल
प्यास, तड़प मत
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
हे मद! मत कर मदहोश
हे मद! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर! मत एक अवसर
आई हूँ संदेश लेकर चन्न मल्लिकार्जुन का
दिये गये वचन का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
अक्क महादेवी ने प्रथम वचन में इंद्रियों के निग्रह पर रह दिया है। उनका यह बल उपदेशात्मक न होकर प्रेम भरा मनुहार है। वे भूख-प्यास से व्यथित नहीं होना चाहती और मद-मोह से भी स्वयं को पृथक् रखना चाहती हैं। ईश्वर-प्राप्ति के लिए क्रोध और ईर्ष्या भावना का भी त्याग करना पड़ता है। कवयित्री भगवान शिव का संदेश सभी लोगों को सुनाना चाहती है।
हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।
दिये गये वचन का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
अक्क महादेवी का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
हे भूख! मत मचल
प्यास, तड़प मत
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
हे मद! मत कर मदहोश
हे मद! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर! मत एक अवसर
आई हूँ संदेश लेकर चन्न मल्लिकार्जुन का