हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।
दिये गये वचन का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
दूसरे वचन में कवयित्री अपना ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण व्यक्त करती है। ईश्वर- भक्त को प्रभु की अनुकम्पा पाने के लिए भौतिक वस्तुओं के सुख- भोग से स्वयं को पृथक् रखना चाहिए। इस वचन में कवयित्री ऐसी निस्पृह स्थिति की कामना करती है जिसमें उसका ‘स्व’ अथवा ‘अहंकार’ पूरी तरह से नष्ट हो जाए। वह अभावग्रस्त जीवन जीकर संतुष्ट रहेगी। इससे ईश्वर-प्राप्ति सुगम हो जाएगी।
हे भूख! मत मचल
प्यास, तड़प मत
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
हे मद! मत कर मदहोश
हे मद! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर! मत एक अवसर
आई हूँ संदेश लेकर चन्न मल्लिकार्जुन का
दिये गये वचन का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
अक्क महादेवी का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
हे भूख! मत मचल
प्यास, तड़प मत
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
हे मद! मत कर मदहोश
हे मद! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर! मत एक अवसर
आई हूँ संदेश लेकर चन्न मल्लिकार्जुन का