“जैसे बाड़ी काष्ठ ही का, अगिनि न काटे, कोई।
सब घटि अंतरि तूँही व्यापक धरै सरूपै सोई।।”
-इसके आधार पर बताइए कि कबीर की दृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है?
इस काव्यांश के आधार पर कहा जा सकता है कि ईश्वर सर्वव्यापक है, उसे काटा या मिटाया नहीं जा सकता। ईश्वर सभी के हृदयों में आत्मा के रूप में व्याप्त है। वह व्यापक स्वरूप धारण करता है।
-ईश्वर निराकार है
-ईश्वर सर्वव्यापक है
-ईश्वर अजर-अमर है
-ईश्वर आत्मा रूप में प्राणियों में समाया है।
कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?
कबीर ने ऐसा क्यों कहा है कि संसार बौरा गया है?
मानव शरीर का निर्माण किन पाँच तत्त्वों से हुआ है?
कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है? इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए है?