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कवि त्रिलोचन के जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।


कवि-परिचय-त्रिलोचन का जन्म 1917 ई. में चिरानीपट्टी, जिला सुल्तानपुर उप्र. में हुआ। हिन्दी साहित्य में त्रिलोचन प्रगतिशील काव्य- धारा के प्रमुख कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। रागात्मक संयम और लयात्मक अनुशासन के कवि होने के साथ-साथ ये बहुभाषाविज्ञ शास्त्री भी हैं। लेकिन यह शास्त्रीयता उनकी कविता के लिए बोझ नहीं बनती। त्रिलोचन जीवन में निहित मंद लय के कवि हैं। प्रबल आवेग और त्वरा की अपेक्षा इनके यहाँ काफी कुछ स्थिर है।

इनकी भाषा छायावादी रूमानियत से मुक्त है तथा उसका ठाट ठेठ गाँव की जमीन से जुड़ा हुआ है। त्रिलोचन हिंदी में सॉनेट (अंग्रेजी छंद) को स्थापित करने वाले कवि के रूप में भी जाने जाते हैं।

त्रिलोचन का कवि बोलचाल की भाषा को चुटीला और नाटकीय बनाकर कविताओं को नया आयाम देता है। कविता की प्रस्तुति का अंदाज कुछ ऐसा है कि वस्तु और रूप की प्रस्तुति का भेद नहीं रहता। उनका कवि इन दोनों के बीच फाँक की गुंजाइश नहीं छोडता।

रचनाएँ- धरती, गुलाब और बुलबुल, दिगंत, ताप के ताये हुए दिन, शब्द, उस जनपद का कवि हूँ, अरघान, तुम्हें सौंपता हूँ चैती, अमोला, मेरा घर आदि (काव्य)। देशकाल, रोजनामचा, काव्य और अर्थबोध, मुक्तिबोध की कविताएँ (गद्य)। हिन्दी के अनेक कोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान।

प्रमुख सम्मान: साहित्य अकादमी, शलाका सम्मान।

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चम्पा कौन है? वह क्या नहीं जानती?


चम्पा अच्छी है:
चंचल है
नटखट भी है
कभी-कभी ऊधम करती है
कभी-कभी वह कलम चुरा लेती है
जैसे-तैसे उसे ढूंढकर जब लाता हूँ
पाता हूँ-अब कागज गायब
परेशान फिर हो जाता हूँ
चम्पा कहती है:
तुम कागद ही गोदा करते हो दिनभर
क्या यह काम बहुत अच्छा है
यह सुनकर मैं हँस देता हूँ
फिर चम्पा चुप हो जाती है
उस दिन चम्पा आई, मैंने कहा कि
चम्पा, तुम भी पढ़ लो
हारे गाढ़े काम सरेगा
गांधी बाबा की इच्छा है-
सब जन पड़ना-लिखना सीखें
चम्पा ने यह कहा कि मैं तो नहीं पढूँगी
तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं
वे पढ़ने-लिखने की कैसे बात कहेंगे
मैं तो नहीं पढूँगी


मैंने कहा कि चम्पा, पढ़ लेना अच्छा है
ब्याह तुम्हारा होगा, तुम गौने जाओगी
कुछ दिन बालम संग-साथ रह चला जायगा जब कलकत्ता
बड़ी दूर है वह कलकत्ता
कैसे उसे सँदेसा दोगी
कैसे उसके पत्र पढ़ोगी
चम्पा पढ़ लेना अच्छा है!
चम्पा बोली: तुम कितने झूठे हो, देखा, हाय राम
तुम पढ़-लिखकर इतने झूठे हो
मैं तो ब्याह कभी न करूँगी
और कहीं जो ब्याह हो गया
तो मैं अपने बालम को संग-साथ रखूँगी
कलकत्ता मैं कभी न जाने दूँगी
कलकने पर बजर गिरे।


चम्पा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती
मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है
खड़ी-खड़ी चुपचाप सुना करती है
उसे बड़ा अचरज होता है:
इन काले चीन्हों से कैसे ये सब स्वर
निकला करते हैं
चम्पा सुंदर की लड़की है
सुंदर ग्वाला है: गायें- भैंसें रखता है
चम्पा चौपायों को लेकर
चरवाही करने जाती है


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