Advertisement

चम्पा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती
मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है
खड़ी-खड़ी चुपचाप सुना करती है
उसे बड़ा अचरज होता है:
इन काले चीन्हों से कैसे ये सब स्वर
निकला करते हैं
चम्पा सुंदर की लड़की है
सुंदर ग्वाला है: गायें- भैंसें रखता है
चम्पा चौपायों को लेकर
चरवाही करने जाती है


प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं प्रसिद्ध कवि त्रिलोचन द्वारा रचित कविता ‘चम्पा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ से अवतरित है। कवि ने चंपा के माध्यम से एक साधारण अनपढ़ युवती की स्थिति का वर्णन किया है। वह एक सामान्य परिवार की सामान्य बालिका है।

व्याख्या-कवि बताता है कि चम्पा नामक यह लड़की बिल्कुल अनपढ़ है। यह काले-काले अक्षरों को पहचान तक नहीं पाती। वह निरक्षर है। हाँ, इतना अवश्य है कि जब मैं पढ़ना शुरू करता हूँ तो वह मरे पास आ जाती है। वह मेरे पास आकर चुपचाप खड़ी हो जाती है तथा मेरा पढ़ना सुनने लगती है। उसे यह जानकर बड़ा आश्चर्य होता है कि इन काले अक्षरों में से ये स्वर कैसे निकल आते हैं। अक्षरों में समाए अर्थ को सुन-समझकर उसे हैरानी होती है। वह इनके रहस्य को समझने में असमर्थ रहती है।

कवि बताता है कि यह चम्पा सुंदर की बेटी है और सुंदर एक ग्वाला है। वह अपने यहाँ गाय- भैंसें रखता है, उन्हें पालता है। चम्पा इन पालतू पशुओं को लेकर बाहर खेतों-मैदानों में जाती है ताकि वे वहाँ चर सकें। तात्पर्य यह है कि चम्पा अनपढ़ है और पशु चराती है।

विशेष:1. कवि ने चम्पा की यथार्थ स्थिति का अंकन किया है।

2. ‘काले-काले’ और ‘खड़ी-खड़ी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

3. देशज शब्दों का प्रयोग किया गया है-अच्छर, चीन्हती।

4. सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।

7193 Views

Advertisement

चम्पा अच्छी है:
चंचल है
नटखट भी है
कभी-कभी ऊधम करती है
कभी-कभी वह कलम चुरा लेती है
जैसे-तैसे उसे ढूंढकर जब लाता हूँ
पाता हूँ-अब कागज गायब
परेशान फिर हो जाता हूँ
चम्पा कहती है:
तुम कागद ही गोदा करते हो दिनभर
क्या यह काम बहुत अच्छा है
यह सुनकर मैं हँस देता हूँ
फिर चम्पा चुप हो जाती है
उस दिन चम्पा आई, मैंने कहा कि
चम्पा, तुम भी पढ़ लो
हारे गाढ़े काम सरेगा
गांधी बाबा की इच्छा है-
सब जन पड़ना-लिखना सीखें
चम्पा ने यह कहा कि मैं तो नहीं पढूँगी
तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं
वे पढ़ने-लिखने की कैसे बात कहेंगे
मैं तो नहीं पढूँगी


कवि त्रिलोचन के जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।


मैंने कहा कि चम्पा, पढ़ लेना अच्छा है
ब्याह तुम्हारा होगा, तुम गौने जाओगी
कुछ दिन बालम संग-साथ रह चला जायगा जब कलकत्ता
बड़ी दूर है वह कलकत्ता
कैसे उसे सँदेसा दोगी
कैसे उसके पत्र पढ़ोगी
चम्पा पढ़ लेना अच्छा है!
चम्पा बोली: तुम कितने झूठे हो, देखा, हाय राम
तुम पढ़-लिखकर इतने झूठे हो
मैं तो ब्याह कभी न करूँगी
और कहीं जो ब्याह हो गया
तो मैं अपने बालम को संग-साथ रखूँगी
कलकत्ता मैं कभी न जाने दूँगी
कलकने पर बजर गिरे।


चम्पा कौन है? वह क्या नहीं जानती?


First 1 Last
Advertisement