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मैंने कहा कि चम्पा, पढ़ लेना अच्छा है
ब्याह तुम्हारा होगा, तुम गौने जाओगी
कुछ दिन बालम संग-साथ रह चला जायगा जब कलकत्ता
बड़ी दूर है वह कलकत्ता
कैसे उसे सँदेसा दोगी
कैसे उसके पत्र पढ़ोगी
चम्पा पढ़ लेना अच्छा है!
चम्पा बोली: तुम कितने झूठे हो, देखा, हाय राम
तुम पढ़-लिखकर इतने झूठे हो
मैं तो ब्याह कभी न करूँगी
और कहीं जो ब्याह हो गया
तो मैं अपने बालम को संग-साथ रखूँगी
कलकत्ता मैं कभी न जाने दूँगी
कलकने पर बजर गिरे।


प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं त्रिलोचन द्वारा रचित कविता ‘चम्पा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ से अवतरित है। कवि चम्पा को पढ़ने के लिए प्रेरित करता है, पर वह न पढ़ने की जिद पर अड़ी है।

व्याख्या-कवि चम्पा को पढ़ने का परामर्श देता है और उसे भविष्य की ऊँच-नीच समझाता है। वह उससे कहता है कि एक दिन तुम्हारा ब्याह हो जाएगा, तुम्हारा गौना भी होगा, तब तुम पति के घर चली जाओगी। तुम्हारा पति कुछ दिन तो तुम्हारे साथ रहेगा, फिर काम- धंधा करने के लिए वह कलकत्ता (कोलकाता) चला जाएगा। यह कलकत्ता बहुत दूर है। तुम्हें उस तक अपना संदेशा भेजना होगा, भला न पढ़-लिखने की स्थिति में तुम उस तक अपना संदेशा कैसे भेज पाओगी? जब उसका पत्र आएगा, तब तुम उसे पढ़ भी नहीं पाओगी। अत: विचार कर लो, पढ़ लेना बहुत अच्छा है।

चम्पा ने कवि को उत्तर दिया कि तुम तो बहुत झूठे हो। तुम तो पढ़-लिखकर भी झूठ बोलते हो। मैं कभी ब्याह ही नहीं करूंगी। इसके बावजूद भी यदि मेरा ब्याह हो ही गया तो मैं अपने पति को अपने साथ ही रखूँगी और उसे कभी कलकत्ता नहीं जाने दूँगी। ऐसे कलकत्ते पर वजवज्रिर जाए, जो मेरे पति को मुझसे अलग करे।

विशेष: 1 चम्पा अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त है।

2. वह संघर्षशील है।

3. सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।

4. छंद-अलंकार बंधन-मुक्त भाषा प्रयुक्त है।

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चम्पा अच्छी है:
चंचल है
नटखट भी है
कभी-कभी ऊधम करती है
कभी-कभी वह कलम चुरा लेती है
जैसे-तैसे उसे ढूंढकर जब लाता हूँ
पाता हूँ-अब कागज गायब
परेशान फिर हो जाता हूँ
चम्पा कहती है:
तुम कागद ही गोदा करते हो दिनभर
क्या यह काम बहुत अच्छा है
यह सुनकर मैं हँस देता हूँ
फिर चम्पा चुप हो जाती है
उस दिन चम्पा आई, मैंने कहा कि
चम्पा, तुम भी पढ़ लो
हारे गाढ़े काम सरेगा
गांधी बाबा की इच्छा है-
सब जन पड़ना-लिखना सीखें
चम्पा ने यह कहा कि मैं तो नहीं पढूँगी
तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं
वे पढ़ने-लिखने की कैसे बात कहेंगे
मैं तो नहीं पढूँगी


चम्पा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती
मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है
खड़ी-खड़ी चुपचाप सुना करती है
उसे बड़ा अचरज होता है:
इन काले चीन्हों से कैसे ये सब स्वर
निकला करते हैं
चम्पा सुंदर की लड़की है
सुंदर ग्वाला है: गायें- भैंसें रखता है
चम्पा चौपायों को लेकर
चरवाही करने जाती है


चम्पा कौन है? वह क्या नहीं जानती?


कवि त्रिलोचन के जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।


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