निर्मला पुतुल के जन्म का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं एवं रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
निर्मला पुतुल का जन्म एक आदिवासी परिवार में 1972 ई. में दुमका (झारखंड) में हुआ था। इनका आरंभिक जीवन बहुत संघर्षमय रहा। घर में शिक्षा का माहौल होने (पिता और चाचा शिक्षक थे) के बावजूद रोटी की समस्या से जूझने के कारण नियमित अध्ययन बाधित होता रहा।
नर्स बनने पर आर्थिक कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी, यह विचार कर इन्होंने नर्सिंग में डिप्लोमा किया और काफी समय बाद इग्नू से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। संथाली समाज और उसके राग-बोध से गहरा जुड़ाव पहले से था, नर्सिग की शिक्षा के समय बाहर की दुनिया से भी परिचय हुआ। दोनों समाजों की क्रिया-प्रतिक्रिया से वह बोध विकसित हुआ जिससे वह अपने परिवेश की वास्तविक स्थिति को समझने में सफल हो सकीं।
इन्होंने आदिवासी समाज की विसंगतियों को तल्लीनता से उकेरा है-कड़ी मेहनत के बावजूद खराब दशा, कुरीतियों के कारण बिगड़ती पीढ़ी, थोड़े लाभ के लिए बड़े समझौते, पुरुष वर्चस्व, स्वार्थ के लिए पर्यावरण की हानि, शिक्षित समाज का दिक्कुओं और व्यवसायियों के हाथों की कठपुतली बनना आदि वे स्थितियाँ हैं जो पुतुल की कविताओं के केंद्र में हैं।
वे आदिवासी जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं से कलात्मकता के साथ हमारा परिचय कराती हैं और संथाली समाज के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को बेबाकी से सामने रखती हैं। संथाली समाज में जहाँ एक ओर सादगी, भोलापन, प्रकृति से जुड़ाव और कठोर परिश्रम करने की क्षमता जैसे सकारात्मक तत्त्व हैं, वहीं दूसरी ओर उस समाज में अशिक्षा, कुरीतियाँ और शराब की ओर बढ़ता झुकाव भी है। निर्मला पुतुल की प्रमुख रचनाएँ : नगाड़े की तरह बजते शब्द, अपने घर की तलाश में।