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दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:
ठंडी होती दिनचर्या में
जीवन की गर्माहट
मन का हरापन
भोलापन दिल का
अक्खड़पन, जुझारूपन भी भीतर की आग
धनुष की डोरी
तीर का नुकीलापन
कुल्हाड़ी की धार
जंगल की ताजा हवा
नदियों की निर्मलता
पहाड़ों का मौन
गीतों की धुन
मिट्टी का सोंधापन
फसलों की लहलहाहट


प्रसंग-प्रस्तुत पक्तियाँ संथाली कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा रचित कविता ‘आओ मिलकर बचाएं’ से अवतरित हैं। कवयित्री आदिवासी समाज के मूल चरित्र को बचाए रखने के लिए कृतसंकल्प है।

व्याख्या-कवयित्री आदिवासी समाज में आ रही आलस्य की प्रवृत्ति पर व्यंग्य करती है। उनकी दिनचर्या में ठंडापन आता चला जा रहा है, जीवन में उत्साह का अभाव होता जा रहा है। उनके मन में हरापन अर्थात् खुशी का आना आवश्यक है। इसके साथ-साथ उनके मन में भोलापन होना चाहिए। उनके स्वभाव में अक्खड़पन के साथ-साथ जुझारूपन की भी आवश्यकता है। तभी वे अपने मूल चरित्र को बनाए रख पाएंगे। संथाली आदिवासी की पहचान उनके दिल में छिपी आग (उत्साह) धनुष की डोरी पर चढ़ा तीर और कंधे पर कुन्हाड़ी है। उन्हें इस पहचान को बनाए रखना है।

झारखंड के परिवेश में जंगल की ताजा हवा, नदियों की पवित्रता, पहाड़ों की चुप्पी, गीतों की धुन, मिट्टी का सोंधापन तथा फसलों की लहलहाहट समाई रहती है। इन सबसे मिलकर यहाँ का विशिष्ट स्वरूप निर्मित होता है।

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दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:
अपनी बस्तियों को
नंगी होने से
शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे बचाएँ डूबने से
पूरी की पूरी बस्ती को
हड़िया में
अपने चेहरे पर
संथाल परगना की माटी का रग
भाषा में झारखंडीपन

निर्मला पुतुल के जन्म का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं एवं रचनाओं का उल्लेख कीजिए।


दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:
और इस अविश्वास भरे दौर में
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने
आओ, मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा है, अब भी हमारे पास!

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:
नाचने के लिए खुला आँगन
गाने के लिए गीत
हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठी-भर एकान्त
बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरी-भरी घास
बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शान्ति

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