कविता में कई- स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। एसे उदाहरणों का भाव स्पष्ट करते हुए लिखो।
कविता में कई स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। इसे मानवीकरण कहा जाता है। ऐसे कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं-
(1) प्रतिदिन नूतन वेश बनाकर, रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ मैं वारिद-माला।
(प्रकृति नित्य नए-नए करंग-बिरंगेरूप में दिखाई देती है। ’रवि के सम्मुख वारिद-माला का थिरकना’ में भी मानवीकरण है।)
(2) ‘रत्नाकर गर्जन करता है’ -(समुद्र का जल भयंकर आवाज करता है।)
(3) लाने को निज पुण्य भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।
रत्नाकर ने निर्मित कर दी सस्वर्ण-सड़कअति प्यारी। (समुद्र का सड़क बनाना-मानवीकृत कार्य है। आशय है- समुद्र-तट पर सूर्य का सुनहरा प्रकाश फैल जाना)
(4).‘नभ में चंद्र विहँस देता है’ -चंद्रमा का हँसना-चंद्रमा की कलाओं का बिखरना है।
(5) ‘वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तनु को सजा लेता हैं-वृक्ष पर काफी सुंदर फूल-पत्ते आ जाते हैं।
आशय स्पष्ट करें-
सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है।
सूर्योदय वर्णन के लिए किस तरह के बिंबों का प्रयोग हुआ है?
पथिक का मन कहाँ विचरना चाहता है?
आशय स्पष्ट करें-
कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम-कहानी।
जी में है अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।