प्रसंग- प्रस्तुत पक्तियाँ रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित कविता ’पथिक’ से अवतरित हैं। इसमें कवि ने समुद्र-तट के प्राकृतिक सौदंर्य का मनोहारी चित्रण किया है।
व्याख्या-कवि देखता है कि समुद्र कै जल के ऊपर सूर्य का प्रतिबिंब अधूरे रूप में निकल रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह बिंब मानो लक्ष्मी देवी के स्वर्णिम मंदिर का सुंदर कंगूरा है। कवि कल्पना करता है कि समुद्र ने अपनी पुण्यभूमि पर लक्ष्मी की सवारी लाने के लिए प्यारी सुनहरी सड़क का निर्माण कर दिया है। सूर्य की सुनहरी आभा समुद्र-तल पर पड़कर सुनहरी सड़क का- सा दृश्य उपस्थित कर देती है।
समुद्र निडर, दृढ़ और गंभीर भाव से गरज रहा है। समुद्र में गर्जन हो रहा है। एक लहर के ऊपर दूसरी लहर आती है तो वे लहरें अत्यंत सुंदर प्रतीत होती हैं। इस दृश्य को देखने में जो मुख मिलता है, भला वह अन्यत्र कहाँ मिल सकता है? हे प्रिय! तुम अपने प्रेम भरे हृदय में इस सुख का अनुभव करो। यह प्राकृतिक सौंदर्य अनुभव करने की बात है।
विशेष- 1. कवि न समासयुक्त शब्दों का प्रयोग किया है-
दिनकर -बिंब, कंचन-मंदिर, स्वर्ण--सड़क आदि।
2.‘कमला...........कँगूरा में उत्प्रेशा अलंकार है।
3. ‘कमला के कंचन’, स्वर्ण सड़क में अनुप्रास अलंकार है।
4. तत्सम बहुल खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
5. प्रकृति का मनोहारी चित्रण हुआ है।
रामनरेश त्रिपाठी के जीवन एवं साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।