प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित खंड-काव्य ‘पथिक’ से अवतरित है। कवि समुद्र-तट के सौंदर्य का वर्णन करने के पश्चात् आकाश के सौंदर्य का चित्रण करता है।
व्याख्या-कवि बताता है कि आधी रात का अंधकार सारे संसार को ढक लेता है और अंतरिक्ष की छत पर तारों को बिखेर देता है। अर्थात् आसमान में तारे निकल आते हैं। तब इस संसार का स्वामी मुसकराते मुख से धीमी गति से आता है और समुद्र-तट पर खड़ा होकर आकाश-गंगा के मीठे- मीठे गीत गाता है।
इस दृश्य सं मोहित होकर आकाश में चंद्रमा हँस देतां है अर्थात् आकाश में चंद्रमा की छटा बिखर जाती है। पेड़ भी विभिन्न प्रकार के पत्तों और फूलों से अपने शरीर को सजा लेते हैं। इम मनोहारी वातावरण में पक्षी भी अत्यधिक हर्षित हो उठते हैं। खुशी उनसे सँभाले नहीं सँभलती। फूल भी महकने लगते हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे वे सुख की साँस ले रहे हों।
विशेष- 1. प्रकृति का मनोहारी चित्रण किया गया है।
2. कई स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।
(चंद्र का हँसना, फूल का साँस लेना)
3. ‘पत्तों-पुष्पों’ और ‘गगन-गंगा’ में अनुप्रास अलंकार है।
4. तत्सम शब्द-प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
रामनरेश त्रिपाठी के जीवन एवं साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।