प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित कविता ‘पथिक’ से अवतरित है। इसमें कवि प्रकृति के मनोहारी रूप को चित्रित करता है।
व्याख्या-कवि बताता है कि बाग-बगीचों, पर्वत, धरती तथा कुंज में बादल बरसने लगते हैं। इस मनोहारी दृश्य को देखकर मेरे हृदय में भी उथल-पुथल होने लगती है, भावनाओं का ज्वार आता है तथा आँखों से आँसू बह निकलते हैं। कवि अपनी पत्नी से कहता है कि समुद्र की लहरों, किनारे, तिनकों, चोटी, आकाश, किरणों तथा बादलों के ऊपर लिखी इस मधुर कहानी को पढ़ो अर्थात् इन्हें समझने का प्रयास करो। प्रकृति के ये उपादान विश्व भर को मोहित करने वाले हैं।
यह प्रेम-कहानी अत्यंत मधुर एवं पवित्र है। मेरे मन में आता है कि मैं भी इस प्रेम-कहानी के अक्षर बन जाऊँ अर्थात् मैं इसका भागीदार बनना चाहता हूँ और विश्व की वाणी बनना चाहता हूँ। यहाँ सदा आनंद प्रवाहित होता रहता है, यहाँ पवित्रता है, शांति है। यहाँ सर्वत्र प्रेम का राज्य दिखाई देता है। यह दृश्य अत्यंत ही सुंदर है।
विशेष- 1. ‘नयर नीर’, ‘मधुर मनोहर’, ‘बनूँ विश्व की बानी, शांति सुखकर, तट तृण तरु’ आदि स्थलों पर अनुप्रास अलंकार की छटा है।
2. तत्सम शब्दों की बहुलता है।
3. प्रकृति का मनोहारी चित्रण है।
रामनरेश त्रिपाठी के जीवन एवं साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।