लेखक ने ऐसा इसलिए कहा होगा कि जब कुंई गाँव-समाज की सार्वजनिक जमीन पर बनती है तब उस जगह बरसने वाला पानी ही बाद में वर्ष भर की नमी की तरह सुरक्षित रहता है और इसी नमी से साल भर कुंइयों में पानी भरता है। नमी की मात्रा तो वहाँ हो चुकी वर्षा से तय हो जाती है। अब उस क्षेत्र में बनने वाली हर कुंई का अर्थ होता है-पहले से तय नमी का बँटवारा। इसीलिए निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में बनी कुंइयों पर समाज का अंकुश लगा रहता है। बहुत जरूरत पड़ने पर ही समाज नई कुंई के लिए अपनी स्वीकृति देता है।
कुंई निर्माण से संबंधित निम्न शब्दों के बारे में जानकारी प्राप्त करें-
पालरपानी, पातालपानी, रेजाणीपानी।
राजस्थान में कुंई किसे कहते हैं? इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्य कुओं की गहराई और व्यास में क्या अंतर होता है?
चेजारों के साथ गाँव-समाज के व्यवहार में पहले की तुलना में आज क्या फर्क आया है? पाठ के आधार पर बताइए।
दिनों-दिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने में यह पाठ आपकी कैसे मदद कर सकता है तथा देश के अन्य राज्यों में इसके लिए क्या उपाय हो रहे हैं? जानें और लिखें।