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मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई

जा के सिर मोर-मुकट, मेरो पति सोई

छांड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई?

संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी

असुवन जल सींचि- सींचि, प्रेम-बेलि बोयी

अब त बेलि फैलि गई, आणंद-फल होयी

दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी

दधि मथि मृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी

भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी

दासि मीरा लाल गिरधर! तारो अब मोही।


प्रसंग- प्रस्तुत पद कृष्णभक्त कवयित्री मीराबाई द्वारा रचित है। मीराबाई ने श्रीकृष्ण को अपना पति मानकर उनकी भक्ति की है। इसके लिए उन्होंने किसी की भी परवाह नहीं की। अब तो फल प्राप्ति का समय आ गया है!

व्याख्या-मीराबाई कहती हैं-मेरे तो गिरिधर गोपाल अर्थात् श्रीकृष्ण ही सर्वस्व हैं। ‘अन्य किसी से मेरा कोई संबंध नहीं है। जिस कृष्ण के सिर पर मोर-मुकुट है, वही मेरा पति है। मैं श्रीकृष्ण को ही अपना पति (रक्षक) मानती हूँ। इस भक्ति के लिए मैंने अपने माता-पिता, भाई-बंधु आदि सभी को छोड़ दिया है। वे मरे कोई नहीं होते। मैंने तो अपने वंश-परिवार की मर्यादा का भी त्याग कर दिया है, अब मेरा कोई कुछ नहीं कर सकता अर्थात् मुझे किसी की चिंता नहीं है। मैंने तो लोक-लज्जा -को खोकर संतों के निकट बैठना स्वीकार कर लिया है। साधु-सन्तों के पास बैठने से यदि लोक-लज्जा जाती है तो भले ही चली जाए, मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता। मैंने तो अपनै आँसुओं रूपी जल से प्रभु-प्रेम रूपी बेल को बोया है। अब तो यह प्रेम बेल फलने-फूलने लगी है और इसमें आनंद रूपी फल आ रहा है। कवयित्री कहती है कि मैंने दूध की मशनियाँ को बड़े प्रेम से मथा है। इसमें दही को मथकर घी तो निकाल लिया और छाछ को छोड़ दिया है अर्थात् सार-तत्व को तो ग्रहण कर लिया और सारहीन अंश को छोड़ दिया है। मैं तो भक्तों को देखकर प्रसन्न होती हूँ और संसार के रंग-ढंग को देखकर रोती हूँ अर्थात् दुखी होती हूँ।

मीरा अपने प्रभु से प्रार्थना करती है कि मैं तो आपकी दासी हूँ। आप मुझे इस भवसागर से पार उतारिए।

विशेष: 1. इस पद में मीरा कृष्ण-प्रेम में निमग्न प्रतीत होती है। उसने कृष्णा को ही अपना सर्वस्व मान लिया है। वह इसमें गर्व का अनुभव करती हैं और उसे समाज की कोई परवाह नहीं है। वह संतों की संगति में रहती है। कृष्ण प्रेमकी बेल को आँसुओं से सींचकर उसनें आनंद का फल प्राप्त किया है।

2. इस पद में अनुप्रास और रूपक अलंकार की छटा रखतें ही बनती है-मोर-मुकुट, कुल की कानि कहा करि, लोक लाज में अनुप्रास, प्रेम-बेलि, आणंद फल में रूपक है।

3. बैठि-बैठि, सींचि-सींचि में पुनरूक्ति प्रकाश .अलंकार है।

4. माधुर्य गण का समावेश है।। राजस्थानी और ब्रजभाषा का मिला-जुला रूप प्रयुक्त हुआ है।

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