घनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी क्यों नहीं समझता था?
धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी इसलिए नहीं समझता था क्योंकि वह जानता था कि मोहन एक बुद्धिमान लड़का है। वह मास्टर जी के कहने पर ही उसको सजा देता था। धनराम मोहन के प्रति स्नेह और आदर का भाव रखता था। शायद इसका एक कारण यह था कि बचपन से ही उसके मन में जातिगत हीनता की भावना बिठा दी गई थी। धनराम ने कभी मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझा, बल्कि इसे वह मोहन का अधिकार समझता रहा था। उसके लिए मोहन के बारे में किसी और तरह से सोचने की गुंजाइश ही न थी।
कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें, जिसमें किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है।
क. किसने किससे कहा?
ख. किस प्रसंग में कहा?
ग. किस आशय से कहा?
घ. क्या कहानी में यह आशय स्पष्ट हुआ है?
मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है?
मास्टर त्रिलोकसिंह के किस कथन को लेखक ने ज़बान के चाबुक कहा है और क्यों?