Advertisement

आज पानी गिर रहा है,
बहत पानी गिर रहा है,
रात भर गिरता रहा है,
प्राण मन घिरता रहा है,
बहुत पानी गिर रहा है
घर नजर में तिर रहा है
घर कि मुझसे दूर है जो
घर खुशी का पुर है जो


प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं भवानीप्रसाद मिश्र, की लंबी कविता ‘घर की याद, से अवतरित है। 1942 में ‘भारत छोड़ो आदोलन’ में कवि को तीन वर्ष के लिए जेल की यातना झेलनी पड़ी थी। वहीं एक दिन जब बहुत वर्षा होती है तब कवि को घर की याद भाव- विह्वल कर देती है। उसे रह-रह कर घर के परिजन याद आते हैं।

व्याख्या-कवि बताता है कि आज बाहर वर्षा हो रही है। बहुत पानी गिर रहा है अर्थात् तेज मूसलाधार वर्षा हो रही है। रात- भर वर्षा होती रही है। इस वर्षा ने उसके मन-प्राण पर बहुत प्रभाव डाला है। उसके मन में तरह-तरह की भावनाएँ जन्म ले रही हैं।

बाहर बहुत पानी बरस रहा है। इस वातावरण में कवि की आँखों के सम्मुख घर का दृश्य साकार हो उठता है। वह बार-बार घर की यादों में डूब जाता है। उसका घर यहाँ की जेल से बहुत दूर है। घर खुशियों से भरा-पूरा है। वहाँ सभी प्रकार की खुशियाँ मौजूद हैं। आज वर्षा के इस मौसम में कवि को अपने घर की बहुत याद अति। है।

विशेष: 1. अत्यंत सीधी-सादी एवं सरल भाषा में कवि अपने मन की बात कहता है।

6808 Views

Advertisement

भवानी प्रसाद मिश्र के जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।


घर कि घर में चार भाई
मायके मे ‘बहिन आई,
बहिन आई बाप के घर
हाय रे परिताप के घर!
घर कि घर में सब जुड़े हैं
सब कि इतने कब जुड़े हैं
चार भाई चार बहिने
भुजा भाई प्यार बहिने


पिता जी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा
जो अभी भी दौड़ जाएँ,
जो अभी भी खिलखिलाएँ
मौत के आगे न हिचकें,
शेर के आगे न बिचकें,
बोल में बादल गरजता
काम में झंझा लरजता
आज गीता-पाठ करके
दंड दो सौ साठ करके,
खूब मुगदर हिला लेकर
मूठ उनकी मिला लेकर


और माँ बिन - पड़ी मेरी
दु:ख में वह गढ़ी मेरी
माँ कि जिसकी गोद में सिर
रख लिया तो दुख नहीं फिर
माँ कि जिसकी स्नेह- धारा
का यहाँ तक भी पसारा
उसे लिखना नहीं आता
जो कि उसका पत्र पाता।


First 1 2 3 Last
Advertisement