वर्षण है मूसलाधार
हृदय थाम लेता संसार
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शायित उन्नत शत-शत-वीर,
क्षत-विक्षत-हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धा-धीर।
प्रसगं: प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध प्रगतिवादी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘बादल राग’ से अवतरित हैं। इसमें कवि ने बादल को क्राति मानते हुए उसके विध्वसंक रूप का चित्रण किया है।
व्याख्या: कवि कहता है-हे बादल! जब तुम बार-बार गरजते हुए भीषण वर्षा करते हो तब तुम्हारी भयंकर गर्जना को सुनकर सारा संसार भयभीत होकर हृदय थाम लेता है अर्थात् लोग आतंकित हो जाते हैं। तुम्हारी वज्रमयी तीव्र गर्जना को सुनकर लोग भय से काँप उठते हैं। बादलों में चमकने वाली बिजली के गिरने से बड़े-बड़े ऊँचे पर्वत भी खंड-खंड होकर इस तरह बिखर जाते हैं जैसे युद्ध में वज्र शस्त्र के प्रहार से बड़े-बड़े योद्धा धराशायी हो जाते हैं।
भाव यह है कि जब क्रांति का शंखनाद गूँजता है तब बड़े-बड़े पूँजीपति भी धराशायी हो जाते हैं। उनके उच्च होने का गर्व चूर-चूर हो जाता है।
विशेष: 1. बार-बार, सुन-सुन, शत-शत में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
2. ‘हृदय थामना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।
3. भाषा में प्रतीकात्मकता का समावेश है।
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया-
यह तेरी रण-तरी,
भरी आकांक्षाओं से,
धन, भेरी-गर्जन से सजग, सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से,
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!
फिर फिर!
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।
शस्य अपार,
हिल-हिल,
खिल-खिल
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।.
सदा पंक पर ही होता जल-विप्लव-प्लावन,
क्षुद्र फुल्ल जलज से सदा छलकता नीर,
रोग-शोक में भी हँसता है
शैशव का सुकुमार शरीर।