शस्य अपार,
हिल-हिल,
खिल-खिल
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।.
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘बादल राग’ से अवतरित हैं। इसमें कवि ने बताया है कि शोषित वर्ग ही क्रांति का आह्वान एवं स्वागत करता है।
व्याख्या: कवि कहता है कि बादलों के गर्जन-वर्षण से जहाँ बड़े-बड़े पर्वत खंडित हो जाते हैं, वहीं छोटे-छोटे पौधे अपने हल्केपन के कारण झूमते और खुश होते हैं। मानो वे हाथ हिला-हिलाकर तुम्हारे आगमन का स्वागत करते हैं। वे बार-बार आने का निमत्रण देते हैं। इस क्रांति से उन्हें ही लाभ पहुँचता है।
भाव यह है कि क्रांति के आगमन से पूँजीपति वर्ग तो बुरी तरह हिल जाता है क्योंकि इसमें उन्हे अपना विनाश दिखाई देता है। किसान मजदूर वर्ग क्राति के आगमन से प्रसन्न चित्त हो जाता हैँ क्योंकि क्राति का सर्वाधिक लाभ उन्हीं को पहुँचता है।
विशेष: 1. ‘हिल-हिल’ ‘खिल–खिल’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
2. ‘हाथ हिलाते’ में अनुप्रास अलंकार है।
3. ‘छोटे लघुभार पौधो’ का मानवीकरण किया गया है।
4. ‘हाथ हिलाना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।
5. प्रतीकात्मकता का समावेश है।
सदा पंक पर ही होता जल-विप्लव-प्लावन,
क्षुद्र फुल्ल जलज से सदा छलकता नीर,
रोग-शोक में भी हँसता है
शैशव का सुकुमार शरीर।
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया-
यह तेरी रण-तरी,
भरी आकांक्षाओं से,
धन, भेरी-गर्जन से सजग, सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से,
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!
फिर फिर!
वर्षण है मूसलाधार
हृदय थाम लेता संसार
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शायित उन्नत शत-शत-वीर,
क्षत-विक्षत-हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धा-धीर।