Advertisement

प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास

पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास

जब वे दौड़ते हैं बेसुध

छतों को भी नरम बनाते हुए

दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए

जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं

डाल की तरह लचीले वेग से अकसर

छतों के खतरनाक किनारों तक-

उस समय गिरने से बचाता है उन्हें

सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत

पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज एक धागे के सहारे

पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं

अपने रंध्रों के सहारे

अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से

और बच जाते हैं तब तो

और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं

पृथ्वी और भी तेज घूमती हुई आती है

उनके बेचैन पैरों के पास।


प्रसगं: प्रस्तुत काव्याशं आलोक धधन्वा द्वारा रचित कविता ‘पतंग’ से अवतरित है। इस कविता में कवि पतंग के माध्यम से बाल मन की इच्छाओं का सुदंर चित्रण करता है। बालक आसमान में उड़ती पतंगों की ऊँचाइयों को छूना चाहता है।
व्याख्या: कवि बच्चों के सुकोमल शरीर का वर्णन करते हुए कहता है कि वे जन्म से ही कई के समान कोमल एवं नरम होते हैं पृथ्वी भी उनका कोमल स्पर्श करने के लिए लालायित रहती है। यह कविता धीरे- धीरे बिबों की एक ऐसी दुनिया में ले जाती है जहाँ शरद् ऋतु का चमकीला इशारा है, जहाँ तितलियों की रंगीन दुनिया है। जहाँ बच्चों के पैरों के पास पृथ्वी घूमती हुई प्रतीत होती है। बच्चे पतंग के पीछे नंगे पैर दौड़ते हैं और बेसुध से हो जाते हैं। वे छतों पर नंगे पैर भागकर छतों तक को नरम बना देते हैं। वे दिशाओं को भी मृदंग की तरह बजाते हैं अर्थात् उनकी दुनिया बड़ी रंगीन है जहाँ दिशाओं रूपी मृदंग बजते हैं। वे इस प्रकार बड़े चले आते हैं जैसे कोई पेड़ की डाल पर झूला झूलते समय शो बढ़ाता है। उनका साहस इतना बढ़ जाता है कि उनके पैर छतों के उन खतरनाक किनारों तक पहुँच जाते हैं जहाँ से गिरने का भय रहता है। उस समय उन्हें इस खतरे से उनके शरीर का संगीत ही बचाता है। इससे वे भय पर विजय पा जाते हैं। उन्हें थामने का काम केवल पतग कर लेती है और यह पतग स्वयं भी एक धागे कै सहारे उड़ती रहती है। इन पतंगों के सहारे बच्चे भी उड़ते प्रतीत होते हैं। पतंग उड़ाते बच्चे यदि कभी छत के खतरनाक किनारों से गिर भी जाते हैं तो भी वे साफ बच जाते हैं। इस अवस्था में उनकी हिम्मत और भी बढ़ जाती है। वे उस समय सुनहले सूरज के सम्मुख आ खड़े होते हैं और उनके बेचैन पैरों के पास धरती घूमती हुई स्वयं चली आती है। पृथ्वी का हर कोना खुद --ब-खुदउनके पास चला आता है। वे फिर से नई पतंगों को उड़ाने का हौसला लिए आ खडे़ होते हैं।

1527 Views

Advertisement

प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें?

सबसे तेज बौछारें गईं भादों गया

सवेरा हुआ

खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा

शरद आया पुलों को पार करते हुए

अपनी नई चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए

घंटी बजाते हुए जोर-जोर से

चमकीले इशारों से बुलाते हुए

पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को

चमकीले इशारो से बुलाते हुए और

आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए

कि पतंग ऊपर उठ सके

दुनिया की सबसे हल्की और रंगीन चीज उड़ सके

दुनिया का सबसे पतला कागज उड़ सके-

बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके-

कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और

तितलियों की इतनी नाजुक दुनिया


Advertisement