Advertisement

उमाशंकर जोशी का साहित्यिक परिचय दीजिए।


उमाशंकर जोशी का जन्म सन् 1911 ई. में गुजरात में हुआ और उनकी मृत्यु 1988 ई. में हुई। बीसवीं सदी की गुजराती कविता और साहित्य को नई भंगिमा और नया स्वर देने वाले उमाशंकर जोशी का साहित्यिक अवदान पूरे भार तीय साहित्य के लिए भी महत्वपूर्ण था। उनको परंपरा का गहरा ज्ञान था। कालिदास के ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ और भवभूति के ‘उत्तररामचरितम्’ का उन्होंने गुजराती में अनुवाद किया। ऐसे अनुवाद गुजराती साहित्य की अभिव्यक्ति क्षमता को बढ़ाने वाले थे। बतौर कवि उमाशंकर जी ने गुजराती कविता को प्रकृति से जोड़ा आम जिंदगी के अनुभव से परिचित कराया और नई शैलियाँ दीं। जीवन के सामान्य प्रसंगों पर सामान्य बोलचाल की भाषा में कविता लिखने वाले भारतीय आधुनिकतावादियो में अन्यतम हैं जोशी जी। कविता के साथ-साथ साहित्य की दूसरी विधाओं में भी उनका योगदान बहुमूल्य है खासकर साहित्य की आलोचना में। निबंधकार के रूप में गुजराती साहित्य में बेजोड़ माने जाते हैं। उमाशंकर जोशी उन साहित्यिक व्यक्तित्व में थे जिनका भारत की आजादी की लड़ाई से रिश्ता रहा। आजादी की लड़ाई के दौरान वे जेल भी गए।

प्रमुख रचनाएँ: विश्व शांति गंगोत्री निशीथ, प्राचीना आतिथ्य, वसंत वर्षा महाप्रस्थान अभिज्ञा (एकांकी), सापनाभारा शहीद (कहानी), श्रावणी मेणो, विसामो (उपन्यास); पारकांजण्या (निबंध); गोष्ठी, उघाडीबारी, क्लांतकवि, म्हारासॉनेट, स्वप्नप्रयाण (संपादन) सन् 47 से संस्कृति का संपादन।

संकलित कविताएँ-

1. छोटा मेरा खेत।

2. बगुलों के पंख।

2580 Views

Advertisement

काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या: छोटा मेरा खेत

छोटा मेरा खेत चौकोना

कागज का एक पन्ना,

कोई अँधड कहीं से आया

क्षण का बीज वहाँ बोया गया।

कल्पना के रसायनों को पी

बीज गल गया निःशेष;

शब्द के अंकुर फूटे,

पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।

झूमने लगे फल,

रस अलौकिक,

अमृत धाराएँ फूटतीं

रोपाई क्षण की,

कटाई अनंतता की

लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।

रस का अक्षय पात्र सदा का

छोटा मेरा खेत चौकोना।


कवि के अनुसार बीज की रोपाई का क्या परिणाम होता है?


कवि ने कागज की तुलना किससे की है और क्यों?


बगुलों के पंख

नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,

चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,

तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।

हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।

वह तो चुराए लिए जातीं मेरी आँखें

नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें।



First 1 2 3 Last
Advertisement