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काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या: छोटा मेरा खेत

छोटा मेरा खेत चौकोना

कागज का एक पन्ना,

कोई अँधड कहीं से आया

क्षण का बीज वहाँ बोया गया।

कल्पना के रसायनों को पी

बीज गल गया निःशेष;

शब्द के अंकुर फूटे,

पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।

झूमने लगे फल,

रस अलौकिक,

अमृत धाराएँ फूटतीं

रोपाई क्षण की,

कटाई अनंतता की

लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।

रस का अक्षय पात्र सदा का

छोटा मेरा खेत चौकोना।


प्रसगं: प्रस्तुत पक्तियाँ उमाशंकर जोशी द्वारा रचित कविता ‘छोटा मेरा खेल’ से अवतरित हैं। इस छोटी-सी कविता में कवि-कर्म के हर चरण को बाँधने की कोशिश की गई है।

व्याख्या: कवि समाज के जिस पन्ने (पृष्ठ) पर अपनी रचना शब्दबद्ध करता है वह उसे अपना छोटा चौकोर खेत के समान लगता है। खेत में जब कही से कोई अँधड़ आया तो वहाँ बीज बोकर चला गया। अँधड़ अपने साथ बीज उड़ाकर लाया था उसे खेत में बोकर चला गया। इसी प्रकार जब हृदय में भावों का अँधड़ आता है अर्थात् भावनात्मक आँधी चलती है तब हृदय में विचारों का बीज डल जाता है और वही आगे चलकर अंकुरित हो जाता है। विचारों का यह बीज कल्पना के रसायन पीकर अर्थात् कल्पना का सहारा लेकर विकसित होता है। बीज तो गलकर नि:शेष हो जाता है, पर उसमें से अंकुर फूट निकलते हैं और छोटा पौधा नए कोमल पत्तों एवं फूलों से लदकर झुक जाता है। रचना-प्रक्रिया में भी इसी स्थिति से गुजरना पड़ता है। हृदय में जो विचार बीज रूप में आता है वही कल्पना का आश्रय लेकर विकसित होकर रचना का रूप ले लेता है। यह बीज रचना और अभिव्यक्ति का माध्यम बन जाता है। इस रचना में शब्दों के अंकुर फूट निकलते हैं। अंतत: कृति (रचना) एक संपूर्ण स्वरूप धारण कर लेती है। इस प्रक्रिया मे कवि स्वयं विगलित हो जाता है।

फिर पौधा झूमने लगता है, उस पर फल लग जाते हैं। उनमें रस समा जाता है और रस की अमृत धाराएँ फूट निकलती हैं। इसी प्रकार साहित्यिक रचना से भी अलौकिक रस- धारा फूटने लगती है। यह उस क्षण में होने वाली रोपाई का ही परिणाम है। साहित्यिक रचना से भी अमृत धाराएँ निकलने लगती हैं। यह रस- धारा अनंत काल तक फसल की कटाई होने पर भी कम नहीं होती अर्थात् उत्तम साहित्य कालजयी होता है और असंख्य पाठकों द्वारा बार-बार पढ़ा जाता है। फिर भी उसकी लोकप्रियता कम नहीं होती। खेत में पैदा होने वाला अन्न तो कुछ समय के बाद समाप्त हो जाता है, किंतु साहित्य का रस कभी नहीं चुकता। वह सदा बना रहता है।

विशेष: 1. कविता में प्रतीकात्मकता का समावेश है। कवि ने खेत और उसकी उपज के माध्यम से अपने कवि-कर्म की बात कही है।

2. पूरी कविता रूपक अलंकार का श्रेष्ठ उदाहरण है क्योंकि खेती के रूपक में कवि-कर्म को बाँधा गया है।

3. ‘पल्लव-पुष्पों’ में अनुप्रास अलंकार है।

4. थोड़े शब्दों में बहुत बड़ी बात समझाई गई है।

5. खड़ी बोली का प्रयोग है।

6. भाषा सरल एवं सुबोध है।

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कवि ने कागज की तुलना किससे की है और क्यों?


कवि के अनुसार बीज की रोपाई का क्या परिणाम होता है?


बगुलों के पंख

नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,

चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,

तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।

हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।

वह तो चुराए लिए जातीं मेरी आँखें

नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें।



उमाशंकर जोशी का साहित्यिक परिचय दीजिए।


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