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कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने

कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने

बाहर भीतर

इस घर, उस घर

कविता के पंख लगा उड़ने के माने

चिड़िया क्या जाने?


प्रसगं: प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि कुँवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘कविता के बहाने’ से अवतरित हैं। यह कविता एक यात्रा है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की है। यहाँ कवि चिड़िया का बहाना लेता है।

व्याख्या: कवि बताता है कि कविता कल्पना की एक मोहक उड़ान होती है। इसे चिड़िया के बहाने दर्शाया गया है। वैसे कविता की उड़ान को चिड़िया नहीं जानती। इसका कारण यह है कि चिड़िया की उड़ान की सीमा है जबकि कविता की उड़ान की कोई सीमा नहीं होती। चिड़िया बाहर-भीतर, इस घर से उस घर तक उड़कर जाती रहती है जबकि कविता की उड़ान व्यापक होती है। कविता कल्पना के पंख लगाकर न जाने कहाँ से कहाँ तक जा पहुँचती है। उसकी उड़ान असीम होती है। चिड़िया इस उड़ान को नहीं जान सकती। कविता किसी भी सीमा को स्वीकार नहीं करती। भला एक चिड़िया क्या जाने कि कविता की उड़ान में कितनी व्यापकता है।

विशेष: 1. सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।

2. कवि की कल्पना असीम होती है।

3. प्रश्न शैली का अनुसरण किया गया है।

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