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तुम्हें भूल जाने की

दक्षिण ध्रुवि अंधकार-अमावस्या

शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं

झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं

इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित

रहने का रमणीय उजेला अब

सहा नहीं जाता है


यहाँ अधंकार-अमावस्या के लिए क्या विशेषण इस्तेमाल किया गया है और उससे विशेष्य में क्या अर्थ जुड़ता है?

कवि ने व्यक्तिगत सदंर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा?

इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली कौन-सी स्थिति कविता में व्यक्त हुई है ?

इस वैपरीत्य को व्यक्त करने वाले शब्द का व्याख्यापूर्वक उल्लेख करें।


यहाँ अंधकार-अमावस्या के लिए ‘दक्षिण ध्रुवी’ विशेषण का इस्तेमाल किया गया है। इससे विशेष्य (अंधकार-अमावस्या) का कालापन और भी गहरा जाता है।

कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में अंधकार को शरीर पर बाहरी रूप से तथा आंतरिक रूप समा लेना चाहता है। यही स्थिति अमावस्या के समान है।

इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली स्थिति कविता में यह है - वह रमणीय उजेला (उजियाला) को झेले और उसी में नहा ले।

कवि ने अपनी बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए प्रिय को भूल जाने, उसके प्रभाव को शरीर और हृदय में उतार लेने, झेलने और नहा लेने (पूरी तरह डूब जाने) की युक्ति अपनाई है।

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बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है-और कविता के शीर्षक सहर्ष स्वीकारा है में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं? चर्चा कीजिए।

इस कविता में और भी टिप्पणी-योग्य पद-प्रयोग हैं। ऐसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख कर उस पर टिप्पणी करें।


टिप्पणी कीजिए; गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता, बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल।


व्याख्या कीजिए-

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है।

जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है।

दिल मैं क्या झरना है?

मीठे पानी का सोता है

भीतर वह, ऊपर तुम

मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात भर

मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है।

उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए यह बताइए कि यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार-अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई?


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